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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर. होती है तिसके कथन करनेवाली श्रुति नीचे लिखी जाती है. वपायाग अर्थात् कलेजाका होम करेतो ऐसा फल श्रुतिमें नीचे लिखे प्रमाणे कहा है. ११ वपायामे हुतायां स्वों लोकः प्राख्यायत । अर्थ-च रबीका होमसे स्वर्ग लोक मिलते है. १२ सोऽग्नेर्देवयोन्यां आहुतिभ्यः संभूय हिरण्यशरीर ऊर्ध्वः स्वर्ग लोकमेति । अर्थ-अनिसें देवयोनिमें आहुति डारनेसे हिरण्य शरीर प्राप्त करके कवं स्वर्ग लोकमें जाता है.पंचिका १४ खंग ॥ पशुका विन्नाग करना सो लिखा प्रमाणे ३६ रत्तीप्त विनाग करने चाहिये और ऐसें करें तो स्वर्गलोकमें जाते है और उक्त प्रमाण विन्नाग करनेकी रीति देवनाग ऋषीयाने ठहराई. जब वे मरगये पीछे कोई देव गिरजा ऋषीकों बताई तिसका अन्यास करना तिस विषयक ऐसा नीचे प्रमाणे लिखा है ॥ १३ तत् स्वर्गाश्च लोकानाप्नुवति प्राणेषु चैवतत्स्वर्गेषु प्रातितिष्ठं तो यीत एतां पशो विभक्तिं श्रौत ऋषिदेवभागो विदांचकार गिरिजाय बाभ्रव्यायऽमनुष्यः प्रोवाच ७ पंचिका १ खंड ॥ स्वर्ग लोकोकुं प्राप्त होता है. प्राण स्वर्गमें चाल्यागया पीले ए पशु होमका विन्नाग और देवन्नाग गिरिजा शषिकुं बतलाया ओ अमनुष्य (देव) हो कर ते कहेता है. हरिचंड नाम एक राजा था तिसके पुत्र नहीं था इस वास्ते वरुण देवकी आज्ञासें अजीगत ऋषिका पुत्र शुनःशेफ विक्ता दूआ मोल लेके तिसको मारके यज्ञ करनेका विचार कराया, यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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