SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० ज्ञानतिमिरजास्कर. देव रहस्यमें लिखा है जंगिन, चमारी, ढेढनी, कसायन, क सालनी, घोबन, नायन, सादुकारकी स्त्री, इन श्रागेको कुलयोगिनी कहते है. इनकी योनिकुं पूजा करते है.. इनकी योनिको चुंबते है, योनिको जिव्हा लगाके मंत्र पढते है, इनसे जोग करते है, इन योनिके कालनजलको तीर्थोदक समजते है, तथा रुश्यामल में लिखा है. । वेश्याकों प्रयाग तीर्थ समान समजला, और धोबनकों पुष्कर तीर्थ समान समजला, और चमारी काशी तीर्थ समान जाननी और रजस्वला श्रर्थात् ऋतुधर्मवाली स्त्रीकों सर्व तीर्थ समान समजनी; अर्थात् इनसें जोकरनें से तीर्थ स्नान जैसा फल है इत्यादि विशेष वाममार्गका स्वरुप देखना होवेतो अहमदावादके ठापाको बपा आगम प्रकाश ग्रंथ देख लेना. इस वाममार्गके सर्व ग्रंथ ब्राह्मण और सन्यासी, परमहंस परिव्राजक, और नाथोंके बनाए हुए है. इनकी ब्राह्मण निंदा नहीं करते है. बलकि हजारों ब्राह्मण इस मतकों मानते है.. इस प्रस्तावना के लिखनेका तो यह प्रयोजन है कि नास्तिक कौन है और आस्तिक कौन है तथा जो कहते है जो वेदांको न माने वे नास्तिक है तो हम नव्य जीवांके जानने वास्ते वेदोंका दाल लिखते है, क्योंकि बहुत लोक नहीं जानते है कि वेदों में क्या लिखा है और जैनी वेदोंकों किस कारणसें नही मानते है. सो सर्व इस ग्रंथ के बांचनेसें मालुम हो जावेगा. इति तपगच्छीय श्रीमन्मणिविजयगणितच्छिष्यमुनि बुद्धिविजयशिष्यमुनि आत्माराम (आनंदविजय ) विरचिते अज्ञानतिमिरभास्करे प्रथमखंडस्य प्रवेशिका संपूर्णा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy