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________________ अज्ञानतिमिरजास्कर. ३७ होवे ऐसा कहना बुद्धिमान मध्यस्थोंका जूट नहीं हो सकता है, क्योंकि मोकमूलरने बौद्धमतकी स्तुति सर्व मतों अधिक लिखी है, इस वास्ते उनकों किसी मतका पक्षपात नही था, हकीकत में वेदोके मंत्र संबध और पुनरुक्त अनर्थक हिंसकतो हमकोंजी मालुम होते हैं क्योंकि वेद एक जनके बनाये हूये नहीं. व्यासजीनें इधर उधर रुपियों श्रुतियां लेकर अपनी मति अनुसार बनाये है. इनकी पत्नि आगे चलकर लिखेंगे. वेदमें कितनेक मंत्रो कृषि क्षत्रिय है, कितनेक नूनी थे, कवितू और विश्वामित्र ये क्षत्रि थे और कवप, एलुप ये शू दासीपुत्र थे, इनकी कथा ऐतरेय ब्राह्मण में है. तथा कितनेक प्राचीन प्राचार नरमेव १ गोमेव २ अश्वमेव ३ अनुस्तरणो ४ नियोग ए शूलगव ६ श् देवरके साथ विवाह द्वादश पुत्र पपैतृक ए महाव्रत १० म धुपर्क ११ इत्यादि जैन वैष्णवमतको प्रबलता वंदनी हो गये है, तो इन अनुष्ठानोंके मंत्र ब्राह्मण लोग पुण्य जानके पठन पाठन स्वाध्याय करते है. और यज्ञ में पशुकों बहुत क्रूरपरोसें मारके तिसके मांसका होम करके जहण करते है. यह बात बहुत लोगों कों ही नही लगती है के इसी तरें गोमूत्र, गौका गोवर, दूध, घी, दहीं एकटे करके शुके वास्ते पीते है परंतु यहबात जूठी है. लोगोंको इसपर श्रद्धा नही प्राती है. वेदका नाममा- इसीतरें नप काशी यदि शरोमं ब्राह्मण र्ग. प्रमुख बहुत लोग वामी बन रहे है. अनेक जीवांकी हिंसा करते है. मांस खाते है, मदिरा पीते है. परंतु वामीयोंके शास्त्र में गौकी बलि नहीं लिखी. गोमांसनकलनी नही लिखा. इस वास्ते वामीयोंका मत गोवधनिषेधके पीछे चला है. वाम मार्गी जो कुकर्म नहीं करता सो करते है, मांस मदिरा, परस्त्री, माता, बहीन, बेटीसें, लोग मैथुन सेवके मोह मानते है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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