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अज्ञानतिमिरास्कर.
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नहीं बोते है तो हिंदुस्तानी पशुयोंकों ब्राह्मण कैसें बोम देवे ? इस अन्यायका मूल कारण अज्ञान है.
वेदविद्या गुप्त क्योंकि जब धर्माध्यक्षोंकां अधिकबल होजाता है तब रखते हैं. वे ऐसा बंदोबस्त करते है कि कोई अन्य जन विद्या पढे नहीं, जेकर पढेतो उसको रहस्य बताते नहीं. मन में यह समजते है कि पढ रहेंगेतो हमको फाईदा है, नहीं तो हमारे बिकाढेंगे. ऐसें जानके सर्व विद्या गुप्त रखने की तजवीज करते है. इसी तजवीजनें हिंदुस्तानीयोंका स्वतंत्रपणा नष्ट करा और सच्चे धर्मकी वासना नहीं लगने दीनी, और नयेनये मतोंके भ्रमजाल में गेरा और धर्मवालोंकों नास्तिक कवाया.
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जिन वेंदाका धर्म रखते है तिन वेदोदीनें महाहिंसक धर्म उत्पन्न करा. तथा वेदमें मदिरा पीनेकाजी मंत्र लिखा है. ऋग्वेदके ऐतरेय ब्राह्मणमें कत्री को राज्याभिषेक करनेकी विधि मी पंचिका वीसमें कांडमें लिखी है सोनीचे प्रमाणे मंत्र है. बदमें मदिरा “ इत्यथास्मै सुराकंसं दस्त श्रादधाति स्वादिष्टया पीने का मंत्र. - तां पिबेत् ” । २० । अर्थ- राजाके हाथमें मदिरेका लोटा देना और स्वादिष्ट यह मंत्र पढके पीवे. इसीतरें अनेक राजायांका राज्याभिषेक हुआ है तिनका नाम और तिनके गुरुयोंके नाम वेदमें लिखे है तिनमें परिक्षितकापुत्र जन्मेजयकों राज्यानिषेक हुआ सो श्रुति नीचे लिखी है । " तुरः कावेपयो जन्मेजयं पारिक्षितमनिषिषेच." रुग्वेद ब्राह्मण ८ । २१ । इस्सें ऐसा मालुम होता है जो रुग्वेद जनमेजय के पीछे बना है
तथा जो मंत्र नीचे लिखे जाते है तिनलें ऐसा सिद्ध होता है कि वेद ईश्वरसे कहे हुए नहीं है ते मंत्र यथा । " ग्रहोंश्व सर्वा जंप्रयं सर्वाश्चयातुधान्यः " । यजुर्वेद रुी ॥ श्रर्थ - " हे रु, सर्प श्रौ
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