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________________ २६ अज्ञानतिमिरत्नास्कर. णोसें डरता है. कृष्णभी ब्राह्म “ नाग्न्यर्कसोमा निल वित्तपास्त्रात्, शंके नृशं ब्रह्मकुलावमानात्' तब ऐसा लिख दिया, और भगवा "" "" नमी ब्राह्मणोंसें अति करते थे तो फेर ब्राह्मण अपने मनकी मानी क्यों न करे ? यही तो स्वच्छंदपणेंने हिंदुयोंका सच्चा धर्म रुबोया. अबी तक परमेश्वरजी निर्भय नहीं हुआ. " आंधे चूहे (नंदर ) थोथे धान जैसे तैसे यजमान गुरु यह कहना सत्य है. हमकों मा सोच है कि कबी हिंडुनी सूते जांगेंगे, बालावस्थाकों बोकेंगे, पक्षपातके अंधकूप निकलेंगे, निकलेंगे सही परंतु यह खबर नहीं, कूप सें निकलके पाखंडी योंके जाल में फरेंगे, सत् मार्ग में चलेंगे. ऋषि शब्दका ऋषि शब्दका अर्थ गाने और फिरनेवालेका होता है. परंतु रुढिसें ग्रथंकर्तायोंकों नाम ऋषि कहते है. अतीत काल में धर्माध्यक्ष बहुत पाखंमी और कपटी थे, राजायोंhi अपना गुलाम बना रखतेथे, और क्रिश्चियन् अर्थात् ईसाइ धर्मका धर्माध्यक्ष पोप करके प्रसिद्ध है, तिसकी फांसी सैं यूरोप खंके लोग अबतक नहीं बूटे है. यूरोपीयन लोगोंकों पोप पापकी माफी देता है, स्वर्ग चमनेका पत्ता देता है, और नरक जानेकानी पत्ता देता है, तिस वास्ते बहुत जोले लोग मरती बखत इन पोपोसें आशीर्वाद लेनें वास्ते हजारों रुपये देते है. अर्थ. पोपयोगका सर्व लोगोंकें पासतो पोप पहुंच नहीं सकता है. वर्त्तन. इसवास्ते कितनेक अपनी तर्फसें मुखत्यार बनाके देश में फिरने वास्ते भेजता है, जेकर पोप किसीकों न्यात बाहिर काढतो फिर किसीकी ताकात नहीं जो उसका संग्रह कर शके. चाहो लाख फौजका स्वामि बादशाह क्यों न होवे. पोपके आगे हाथ जोमेद छूटना होवे है, जैसा धर्माध्यक्षका जुलम अन्य देशो में है तैसा दांजी है. जब यूरोपीयन बडी अकलवालोंकों पोप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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