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अज्ञानतिमिरास्कर.
श्
जीमनेकों न जानां और जिस श्राद्ध में मांस नहीं होवे तहां किसी ब्राह्मणको श्राद्ध में जीमनेंको न जाना चाहिये. " अव बुद्धिमानोंको विचारना चाहिये, ऐसे शास्त्रोंके बनाने और माननेवाले अपने आपकों श्रास्तिक और जैनीयोंकों नास्तिक कहते है.
मय.
वेद बनायेका तथा वेद मूल में एक वखतमें बने हुए मालुम नहीं हो भिन्न भिन्न स- ते है, किंतु जुदे जुड़े कालमें जुड़े जुड़े ऋषियो के जुदे जुदे बनाये हुए मंत्र है. वे सर्व एक संहितारूप देखने में आते है. और वेद यह जो शब्द है सो अन्यग्रंथ मेंजी लगानेकी रीतिहै. जैसे गांधर्व वेद, धनुर्वेद, श्रायुर्वेदः भारतकोंजी पांचमा वेद कहते है. वेद शब्द लगा वेदके अक्षरोंकों मंत्र कहते है, जिनमें परमेश्वरकी नाभी बने है. तथा और देवोंकी प्रार्थना है और कितनेक मंत्र विधि है, जिनमें वन याजनकी विधि है, जडमें जे ऋषि थे
यकर अन्य
कत्रियोंके घरमें यज्ञादिक कर्म करतेथे तिस वास्ते ये ऋषि ध माध्यक बन गये, तब तिन ऋषियोंने लोगों के मनमे यह बात दृढा देई कि वेदोंके सिवाय कुछभी न होगा, और सर्व देवते हमारे वेदमंत्रो ताबे है,
देवविधिमें दे- और वेदमंत्र
जिस देवताका श्रावादन करीये वो
हाजर होता है, और जिसका विसर्जन करीये वो
चला जाता है, और जो कुछ हम उनकों कहदेते है सो करदेते है, तिनके सिद्ध करने वास्ते हजारो ग्रंथ लिख गए है. सूर्य उगता है सो ब्राह्मणोंकी संध्याके प्रभावसें नगता है. यह कथन जारतमें लिखा है, जैसे जैसे लोगोंके दिल यह बात बैठती गई तैसें तैसें धर्माध्यक्ष ऋषियोंका अमल जबरदस्त होता गया. भागवतमें लिखा है “श्रीकृष्णजी कहते है, अत्रि, सूर्य, सोमादिकके कोप से मुजको इतना कर नहीं, जितना मुजको ब्राह्मणोंके कोपका मर है.” सो श्लोक यह है.
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वताका गावा
हन और सर्जन.
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