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'अज्ञानतिमिरनास्कर. र पिशाच इनका नाश कर” ॥“हशेगं मम सूर्य हरिमाणं चनाशय" । झग्वेद । अर्थ-हे सूर्य मेरे हृदयके रोगका औ कमला को रोग नाशकर । “ नर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुदीयमामृतात्"। झग्वेद । अर्थ-हे यंबक मीटसे काकमीका फलकी माफक मुजको मृत्युसे बचाव । “मेधां मे वरुणो ददातु”। यजुर्वेद. अध्याय ३३ मंत्र में लिखा है “ मुजे वरुण देवता बहिदेवे" । तथा वेदकी श्रुतियां परस्पर विरुइती है. तिनमेंसे कुचक नीचे लिखी जाती है। गृत्समदशषिः ऋग्वेद संहिता, अष्टक २ अध्याय ६ वर्ग २५ रुचा ६-" दिवोदासाय नवति च नवेंः। पुरोव्यस्छंवरस्य "॥ गृत्समदशषि ऋग्वेद संहिता, अष्टक २ अध्याय ६ वर्ग १३ । “अध्वर्यवो यः शतं शंबरस्य पुरो विनेदाब्दश्मनेव पूर्वोः परिचपो" ॥ देवोदासी ऋषिः ऋग्वेद संहिता अष्टक २ अध्याय १ वर्ग १ए । “निनत्पुरो नवतिमिपूरवे दिवोदासाय महिदाशुषेनृतो वजेपदाशुषेनृतो अतिथिग्वायेशंबरं गिरेरुयो अवान्नरत्.” अर्थ- २६ नामा राजा था. तिसका मित्र दिवोदास नाम करके था, तिसकी तर्फसें शंबर नामा दैत्य था, तिसके साथ इंशबहुत वार लमया, तिस विषयकमें वेदमें कथा बहुत जगें आती है.
श्रुतिओम पर- किसी जगें वेदमें इंऽ जो है सो पर्जन्याधिपति देव स्परविराधा है, ऐसेनी कहाहै. शंबरासुरदैत्यके निनानवे गाम इंश्ने नजम करे ऐसे एक मंत्रमें कहा है. फुसरे मंत्रमें सो १०० गाम नजम करेकी कथा है, और तिसरे मंत्रमें नब्वे ए गाम नजम करेकी कथा है, इंका पराक्रप नीचे लिखे हुए मंत्रमें बहुत बनन करा है. तिसका प्रथम बचन लिखा है. तिसमें ऐसा लिखाहै कि इंको मदिरा बहुत अच्छा लगता है इस बास्ते मदिरेको अग्निमें गेरदेवो । गृत्समदऋषि ऋग्वेद संहिताअष्टक २ अध्याय ६वर्ग१३॥ " अध्वर्यवो नरतेंशयसोममामत्रेन्निःसिंचतामघमंधः”॥तथाश्स
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