SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ डाकावा .. . ..... .. ....... ____ अज्ञानतिमिरनास्कर सी ए सर्व एक मत वाले है. शंकरस्वामीके पीने संवत ११०५ में रामानुज नुत्पन्न हुए. ननोंने कहा कि शंकरका मत अयौक्तिक और बडा कठिन है. नूतनाथ महादेव और काली करालीकी पूजाका पीछे भिन्न भि म न मतोकी उ क्या यह दिन है ? सीतारामकों नजो और सहित्पत्ति. जसे तरो. रामानुजका मत लोगोंकों अग लगा. तब त्रिपुमकी जगें तिलक लगाना शरु कीया, लेकिन जलदही संवत १५३५ में वल्लनाचार्यनें जन्म लीया और राधा कृष्णका रास विलास ऐसा दिखलायाकि नसने बहुतोंका मन खुन्नाया. वल्लभाचार्यका विशेष करके स्त्रीयोंकी नक्ति इसपर अधिक नई. भक्तिमार्ग. इस कारण नसकी नन्नति बहुत जलद होगई. इनके विना एक नक्तिमार्ग निकला सो इसकालमें चलता है. ति-- नमें चार संप्रदायके गृहस्थ, त्यागी, वैरागी साधु इत्यादिकोंकों गिरातेहै. हरदास पुराणिक, रामदासि वारकरी ये सर्व नक्ति मार्गवाले जीवहिंसाको बहुत बुरा जानतेहै. दक्षिण देशमें कै स्थानोमें जीवहिंसा नक्तिमार्गवालोंके सबबसे दूर दुईहै.. वैदिकी हिंसा नधर संवत ६०० से नपरांत जैनमार्गकी वृद्धिा . का अस्वीकार - * मराजा ग्वालियरका, वनराज राजा पट्टनका, सिहराज कुमारपाल पट्टनके राजे इत्यादि राजायोंने तथा विमलचं, नदयन, वाग्नट, अंबम, बाहम, वस्तुपाल तेजपाल, साचासुलतान प्रमुख राजायोंके मंत्रीयोंने तथा आबु, झांझण, पेथम, नीम जगडु, धनादि शेगेने जैन मतकी वृद्धि बहुत करी, तथा और अनेक पंथ निकले परं वैदिकी हिंसा किसीनेनी कबुल नहीं करी. इन पूवोक्त जैन, वैष्णव, नक्तिवालोंने हिंसा बहुत जगासे हटादी तोन्नी कितनेक देशोंमें वैदिकी हिंसा चलती है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy