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________________ श्रज्ञानतिमिरन्नास्कर. १३ इस वास्ते वामी श्रद्वैत वादी है. तथा पद्मपुराण में पाखंडोत्पत्तिके दो अध्याय है तिनमें शिवजीने कहाहै यह वाममार्ग मैनें लोगांके ष्ट करने वास्ते बनाया है. माय. वाममार्गवास्ते कदापि यह बचन वैष्णव लोकोंने लिखा होगा: शिवका अभितोजी इस्में यह मालुम पड़ता है कि श्री महावीरजीसें पीछे यह मत चला होवेगा, नहीं तो इनके लाखों ग्रंथ कैसे बन जाते. वाममार्गके चलां पीछे फिर कुमारिलजहने पूर्व मीमांसा वैदिक यज्ञ करनेका मत चलाया, तिसमें कितनेक कर्म जिनमें बहुत हिंसाथी तिनकों काम्यकर्म ठहराके रख करा. कितनेक रख-लीये, लिख दिया कि इनके करनें सें मोक होती है. स्थापना. अद्वैतमत की यह पंथ कितनेक दिन चला पीछे शंकर स्वामीनें श्रतपंथ चलाया. वेदांत मत और कौलमत बहुत दिस्सों से मिल जाता है. क्योंकि कौलमतको राजयोग कहते है, पतंजलिके शास्त्रकों हठयोग कहते है, वेदांतको ज्ञानयोग कहते है, और गीताके मतकों कर्मयोग कहते है. इन चारो योगोमें अंतर इतना है कि राजयोगमें लोग जोगके मोह होनेकी इच्छा करते है. इग्योगमें देद दंड, समाधि वगैरेंसें मोक्षकी इच्छा और ज्ञानयोग में वैराग्य से मोक, कर्मयोगसें वर्णाश्रमके धर्म करणेंसें मोक्ष. पाखंडमत या पद्मपुराण में ऐसी कथा है कि पाखंरुमतकी वृद्धि स्ते शिवका अ करने वास्ते शिवजी अवतार लेंगें. इस कथासें कोई कहता है कि यह कथा वाममतसें संबंध रखती है. और कितनेक arra कहते है के शंकराचार्य से संबंध रखती है. क्योंकि शंकरस्वामीनें आत्मा ब्रह्म कहा यह बमा पाखंम करा. - बतार. शंकराचार्य वा ऐसें मध्व संप्रदायके वैष्णव कहते है, तथा कौल, स्ते मध्यमतका अभिप्राय. शाक्त, वाम, अघोरी, औघर और परमहंस संन्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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