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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर. मांसाहारी वा सारस्वत, मैथिल, कान्यकुब्ज, गौड, नत्कल ये पांच मण गौड ब्राह्मण है. इनकी बस्ती करांची, लाहोर पिशावरसें लेके कलकत्ते तक सर्व हिंदुस्तानमें ये सर्व मरमांसका आहार नित्य करतेहै. तिनमें दिल्यादिके आसपासके देशोमें जो गौड ब्राह्मण मांस नहीं खाते है तिसका कारण यहहै, दिल्लीके गिरदन वाहमें बहुतसी बस्ती अग्रवाल बनियोंकी है.अग्रवाल आधे जैनी और आधे वैष्णव है. गौम इनके पुरोहित है. जेकर गौड मांस खावेतो जैनी वैष्णव अग्रवाल ननको घरमें न चमने देवें. इस वास्ते इन देशोमें वैदिक यज्ञ नहीं होता है, यज्ञमें मांस अग्रवालोंके कुल में मांस मदिरेका निषेध है, और भक्षणः शविम,तैलिंग,कर्णाट, महाराष्ट्र इन चारों देशोमें यज्ञ करती वखत मांस खातेहै परंतु नित्य नहीं खाते है, और गुजरात मारवाडके ब्राह्मण किसी कारणसेंनी मांस नही खाते है. और दक्षिणमें जो वैभव संप्रदायके ब्राह्मण है वो आटेका बकरा बना करके यझमें होमके खातेहै. पशुहोमका प्र- इसीतरे बमोदरेमें करनाली क्षेत्रमें यज्ञ करा है.तथा चार: पूना, सतारा, काशी इत्यादि क्षेत्रो वहुत यज्ञ होते है, तिनमें कोरे यझमें चार कोश्में आठ कोइमें पच्चीस इतने पशु होमनेमें आतेहै. और इन जानवरोंको शस्त्रसे नहींमारतेहै क्योंकि तिनका रुधिर बाहिर नहीं गिरने देतेहै. इस बास्ते गला घोंटके मारते है. यह काम बहुत निर्दय क्रूर हृदयवालोंका है परंतु वेदाज्ञा समझते है इस्से करते है. जिस जगे जैनी गुजराती मारवामी गाममें होते है तिस गाममें अग्निहोत्रि यज्ञ करें तो कोई ननको सौदा माल देते नहीं, दामसेंनी उनको माल नही देते है. ऐसा नियम करते है. तिस्सें अग्निहोत्रियों को बहुत हरकत होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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