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________________ ३०२ अज्ञानतिमिरनास्कर अवसरमें जो जिस प्रतिलेखनादि क्रियाका अवसर होवे तिसमें सर्व क्रिया करे. प्रमादसें अधिक मोठी क्रिया न करे. अन्य क्रिया करता हुआ विचमें अन्य क्रिया न करे. सर्व क्रिया सूत्रोक्त रीतिसे करे. सूत्र तिसको कहते है जो गणधरोंने रचे होवे, प्रत्येक बुड़ियोंके रचे, श्रुत केवलिके रचे, अनिन्न दश पूर्वधरके रचे, इनको निश्चय सम्यक्तवान् सद्भूतार्थ, सत्यार्थवादी होनेसे इनका कान सत्य है. इनके विना जो कोइ इनके कहे अनुसार कहे तोनी सत्य सूत्रही जानना. ऐसी पूर्वोक्त क्रिया करे, अप्रमादसें. सो जिन मतमें अप्रमत्त साधु है. इति कथन करा क्रियामें अप्रमादनामा नावसाधुका चौथा लिंग. संप्रति जिस अनुष्ठानके करणेकी शक्ति होवे सो अनुष्ठान करे ऐसा पांचमां लिंग लिखते है. संहनन वज रीषन नाचारादि और ब्य, केत्र, काल, नाव इनके नचितही अनुष्ठान करें, अनु. ष्ठान तप १ कटप २ प्रतिमादि जिस संहननादिकमें जो निर्वहण कर शकिये सोइ अनुष्ठान करे. क्योंकि अधिक करे तो पुरा न होवे. बीचमें गेडना पडे. प्रतिज्ञाका नंग होवे. फेर कैसे अनुष्ठानका आरंन करे-जिसमें लान्न बहुत दुवे, और संयमको बाधा न होवे, और प्रारंनित अनुष्ठान बहुतवार वारंवार कर शके क्योंकि अनुचित अनुष्ठान करके पीडित हुआ फैर नस अनुष्ठानके करणेमें नत्साह नहि करता है. जैसें साधु रोगी हो जावे, तिसकी चिकित्सा करे तो सदोष औषधी लेनी पड़े. जेकर सदोष औषधी न करे तव अविधिसे मरे, और संयमकी अंतराय होवे, इसी वास्ते कहा है, सो तप करणा जिस्से मनमें आर्सध्यान न होवे, और जिस्से इंडियांकी हानि न होवे, और योगांकी हानि न होवे तिस अनुष्गनके करणेमें अन्यजन सामान धर्मीयोंको करणेकी देखादेखी इच्छा नप्तन होवे. फिर कैती क्रिया करे जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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