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द्वितीयम.
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के करले की, गुरुकी नन्नति होवे. धन्य यह गच्छ गुरु है.. तिसके सहाय से ऐसे पुष्कर कारक मुनि दिखते है, ऐसें लोक श्लाघा करे. तथा जिस्सैं जिनशासनकी नन्नति होवे. बहुत अच्छा यह जैनमत है. इममी इसको अंगीकार करेंगे. फेर कैसी क्रिया करे जिससे इसलोक परलोककी वांबा न करे. श्रार्यमदागीरी, जगतका चरित वृत्तांत स्मरण करता हुआ सत् क्रिया करे. अत्र कथाज्ञेया पूर्वोक्त अर्थ प्रगटपरों कहते हैं. जिसके करणेकी साम होवे, समिति, गुप्ति, प्रतिलेखना, स्वाध्याय, अध्ययनादि तिसके करमे आलस्य न करे सो साधु चारित्र संयम, विशुद निःकलंक, कालसंहनन आदिके अनुसार संयम पालने सामर्य है, क्योंकि शक्यानुष्ठानही इष्ट सिद्धिका हेतु है.
प्रश्न. धर्मजी करता हुआ कोई असत् प्रारंभ अशक्यानुare करता है.
उत्तर. मतिमोद मानके अतिरेक करता है. किसकी तरे करता है ? जो कोइ मंदमति गुरु धर्माचार्यकों अपमान करे यह गुरु हीनचारी है. ऐसी अवज्ञा गुरुको देखता हुआ प्रारंज करता है. अशक्यानुष्टानका जो काल संहननादि करके दो नदि शक्ता है जिनकल्पादिकका मार्ग, जिसको शुद्ध गुरु नहि कर शक्ते है तिसको मतिमोह अभिमानकी अधिकतासें नक्षत प्रजिमानी जीव करता है सो कदापि नहि चल शक्ता है. शिवति आदि दिगंबर वत् इति कथन करा शक्यानुष्टानारंभ रूप पांचवा जाव साधुका लिंग
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अथ गुणानुराग नाम बा लिंग लिखते है. चरण सत्तरि ७७ करण सतरि ७० रूप मूल गुण उत्तर गुणांमें राग प्रतिबंध शुद्ध चारित्र निष्कलंक संमयका रागी और परिहरे-वर्जे तिस:
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