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________________ २६४ अज्ञानतिमिरनास्कर. तब ईश्वर वादीओंको देखके पतंजलिने सेश्वरसांख्य अपरनाम पातंजल मत चलाया. उधर नपनिषदवालोनेन्नी वेद और नपनिषदोंमें ईश्वर दाखल करा. नुधर जैनमतवालानी आता था. तिस समयमें हिंज्लोक मतोंके वास्ते परस्पर बहुत विरोध करने लगे, तब अनेक ऋषियोके नामसे अनेक स्मृतिप्रो रची. की सीसे कुछ और कोसीमें कुछ लीख दीया. ऐसें गमुरी प्रवाह चला आया. जब श्रीपार्श्वनाथ जिनको दुआ २०० वा २७०० वर्षके लगनग गुजरे है तिनके निर्वाण पीने. तिनोंके शिष्योके शिष्योके पीछे कीसी गामके कृत्रिके पुत्रने जैनमुनि पासे दिक्षा लीनी साधुपणेंमें तिसका नाम बुझकीर्ति रखा सो सरजू नदीके किनारे नपर किसी पर्वतमें तप करता था, तिसके मनमें तप करता अनेक कुविकल्प नत्पन्न हुए, तब तिसने जैनमतकी कितनीक वास्ते लेकर योगाचार विज्ञानाद्वैत क्षणिकवाद नामा मत चलाया. तब लोग नसको मानने लगे, तव तिस मतके चार मत हुए. योगाचार १, माध्यमिक २, वैनाषिक ३, सौत्रांतिक ४. तब लोक चारो मतांको मानने लगे. तिसकी परंपरामे मौदगलायन और शारिपुत्र और आनंद श्रावक हुए, श्नोने बौधमतकी वृद्धि करी. जब महावीर स्वामिके पीछे राजा अशोक जैन मतको गेमके बौड़ दुआ तिसने अत्यंत बौ६ मतकी वृद्धि करी. अशोक राजाके पौत्र संप्रति राजाने फिर जैनमतकी वृद्धि करी. बौधोके और जैनमतके बलसे वेदमत, अद्वैत पातांजल, सांख्य प्रमुख मतो बहुत कम हो गये. तिस समय संवत ७00 के लगनग कुमारिलन उप्तन हुए तिनोनं मीमांसाके नपर वार्त्तिका रची. तिसमें कितनेक हिंसक काम निषेध करके और मनकल्पनासे कितनेक वेदश्रुतियोंके नवीन अर्थ बनाके फिर वैदिक मत चलाया, लोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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