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हितीयखम.
२६५ तिसको मानने लगे. तिस समयमेंही शंकरस्वामी उत्पन्न हुए, तिसने विचार कियाकी जैनमत और बौधमत मानके अब लोक वैदिक मतकी हिंसा कदापि नहि मानेगे तिस वास्ते समयानुसारी उपनिषदो नपर नाष्य रची. तिसके समयमे पुराने शास्त्रो कीतनीक बातां निकाल दिनी और नवीन रचना करी. तिनके समयमें नवीन पुराण, उपपुराण नामसे बहुत शास्त्रों रचे गये. शंकर स्वामीने राजाओका बल पाकर बौक्ष्मतवालोंको हिमालयसे लेकर श्वेतबंधु रामेश्वर तक कतल करवा माला परंतु जैन मत सर्वथा नष्ट नहि दुआ, किंतु कम हो गया. शं. करस्वामिने अद्वैतमत, शैवमत और वाममतके मुख्य देव श्री चक्रको द्वारिका शृंगेरी प्रमुख मगेमे स्थापन करा, तब लोक तिनको मानने लगे. तिनके पीछे रामानुज उत्पन्न हुआ. संवत ११३३ के लगलग तिसने शंकरके मतको खंगन करके श्री वैब्णव चक्रांतियोका मत चलाया और नपनिषदोपर शंकरलाष्यसें विरु नाष्य बनाया, लोक तिसको मानने लगे. तिस पीने संवत १५०० के लगन्नग वल्लनाचार्यनें रास विलासी मत चलाया. वैष्णवमतमेसें अनेक शाखा निकली. निंबार्क, मध्वर्क रामानंदजीने वैरागीओका मत चलाया. गुजरात देशमें १०० वर्ष लगलग गुजरे है तिस समयमें एक प्राह्मणने स्वामिनारायणका पंथ चलाया है. पीडले सर्व मतोंको रद करते है. इस मतके चलानेवालेका चालचलन कैसी होवेंगी यह तो हम देखते है. परंतु तिनकी मादीवालेको तो हम देखते है. करोडो रुपश्योकी जमा ननोंने अपने सेवकोंसें एकही करी है, ऐसी बात लोक कहते है. और अस्वारी वास्ते सर्व वस्तु मोजूद है. गहना गांग पहनते है, स्त्रीओंसे विवाह करते है, स्त्रीओंसें लोग लोगते है, लड़के नुत्पन्न करते है, खुब खाते और मजे नमाते हैं.
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