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________________ हितीयखंग. २६६ जैनमतको गेडके कितनेक लोक इस मतको मानने लगे जब नवमा सुविधनाथ पुष्पदंतका तीर्थ व्यवच्छेद हुआ तब ब्राह्मणानासोने हिंसक वेदांके नामसे अनेक श्रुतियां रची तिनसे राजादिकों के घरमें यजय याजन करने लगे. जब विसमें अरिहंत मुनिसुव्रत स्वामीकी नलादमें वसुराजा शुक्तिमती नगरीमें हुआ तिसके समयमें हीरकदंबक उपाध्यायके पुत्र पर्वतने महाकाल असुरके सहायॐ महा हिंसक नवीन ऋचांओ रची. तद पीछे व्यासजीनै सर्व ऋषि अर्थात् जंगलके ब्राह्मणोंसे सर्व श्रुतियां लेकर तिनके चार हिस्से करे. प्रथम हिस्सेका नाम ऋग्वेद रखा और अपने पैल नामा शिष्यको दिया. उसरे हिस्सेका नाम यजुर्वेद रखा और अपने शिष्य वैशंपायनकों दिया. तिसरे हिस्सेका नाम सामवेद रखा सो अपने जैमिनि नामा शिष्यको दिया. चोथे हिस्से का नाम अथर्ववेद रखा सो सुमंतु नामा शिष्यको दिया.श्न चारों वेदोके चार ब्राह्मण नाग है, तिनके अनुक्रमसें नाम रखे ऐतरेय, तैतरेय, तांझ, गोपथ. तिस अवसरमें वैशंपायन प्रमुखोंसें वैशंपायनके शिष्य याज्ञवल्यकी लडाइ दुश्, तब याज्ञवल्क्यनें और सुलसाने शुक्ल यजुर्वेद रचा. तिसका शतपथ नामा ब्राब्राह्मणनाग रचा. तिसमें लिखा है, यादवल्क्यने सूर्यके पास विद्या शीखके शुक्ल यजुर्वेद रचा है. यह सूर्य नामा को ऋषि होगा. पीछे इनमेंसें जैमिनिने पूर्व मीमांसा रची. जब तिस मतकी बहुत वृद्धि दुश् तब तिस मतके प्रतिपदी ब्रह्माद्वैत मतके प्रतिपादक सांख्यमतके साहाय्यसे ब्रह्मसूत्र रचे. तिनके अनुसार अनेक ऋषियोंने केन कठ मुंभ गंदाग्यादि उपनिषद् रचे. एकदा समये मगध देशमें गौतम ऋषिको ब्राह्मणोंने बहुत सताया तब गौतमने नपनिषद् और वेदके मतको खंगन करने वास्ते ईश्वर कर्तृ नैयायिक मत चलाया, तब लोक इसको मानने लगे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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