SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ अज्ञानतिमिरनास्कर. निःकलंक सम्यग् दर्शन धारण करे, अमरदत्तवत् . इतिआठमान्नेद. अथ गाडुरिका प्रवाह नामा नवमा नेद लिखते है. गाडरिका एकिका, गाडर, घेटी, नेम नामांतर तिनका प्रवाह चलना. एक नेमके पीछे सर्व नेकां चलने लगती है, इसका नाम गरिप्रवाह है. एक नेम नां करती है तब सर्व ना करने लग जाती है. आदि शब्दसे कीमे मक्कोमोंका प्रवाह तिनकी तरे ये संसारी लोक तत्वको तो समजते नहि है, एकही देखादेखी करने लग जाते है. इस गाडरी प्रवाहका यत्किंचित् स्वरूप हम यहां जैनमतादि और इतिहासादि पुस्तकोमें देखा है और जैसे सुना है और जो हमने देखा है सो लिखते है. असली ईश्वर नगवतका मत गोड के कुच्छकतो पीरले मतोकी बातां लेकर और कुच्छक स्वकपोलकलियत बातां मिलाके नवीन मत चलाना तिस मतको जब एक नोला जीव अंगीकार करे तब तिसकी देखादेख अन्य जीव नेमोंकी तरे विना तत्वके जाने नां नां, हां हां करते हुए तिस मतवालेके पीछे चलने लग जाते है, तिसको हम गामरिका प्रवाह कहते है, सो इस तरेका है. - प्रथम ईश्वर, नगवान् श्री ऋषनदेवनें जैनमत इस अवसपिणी काल में इस नरतखंडमें प्रगट करा और तिसके पुत्र नरतने श्री ऋषनदेवकी स्तुति और गृहस्थ धर्मका स्वरूप प्रतिपादन करनेवाले चार वेद रचे थे. तिस अवसरमें नरतका पुत्र और श्री ऋषनदेवका चेला मरीचि नामा मुनि संयमसे ब्रष्ट हुआ, तब स्वकपोलकल्पित परिव्राजकोके मूल वेशका हेतु त्रिमंमादि रूप धारण करा. तिसका चेला कपिल मुनि हुआ, तिसने स्वकपोलकल्पित सांख्य मुख्य नाम कापिल मत अपने शिष्य आसूरीको नपदेश करा. षष्ठितंत्र नामा पुस्तक रचा. जैनमतकों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy