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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर फको मातापिताको शतपाक, सहस्रपाक तेल करके मर्दन करे, पीठे सुगंधीक नवटने करी नवटन करे, पीछे तीर्थोदक, पुष्पोदक, शुद्धोदक तीन प्रकारके पानीसे स्नान करावे पीछे सर्वालंका र करी विनूषित करे, मनोज्ञ स्थाली, पाकशु६ अगरह प्र. कारके व्यंजन संयुक्त नोजन करावे; जब तक जीवे तब तक मातापिता दोनोंको अपनी पिठ नपर नगयके फिरे तोन्नी माता पिताके नपकारका बदला नहि दीया जाता है. जेकर पुत्र मातापिताकी केवल प्ररूपित धर्ममें स्थापन करे तो देणा नतरे. तथा को शेठ किसी दरिडी नपर तुष्टमान होके रास पुंजी: देश दुकान करवा देवे, पीछे दरिडी पुण्योदयसें धनवान हो जावे और शेठ दरिड़ी हो जावे तव शेउ तिसके पास जावे, तब वो संपूर्ण धन शेठको दे देवे तोजी शेठके नपकारका बदला नहिं नतरे, जेकर शेठको केवली प्ररूपित धर्ममें स्थापन करे तो बदला नतरे. . किसी पुरुष तथा रूप श्रमणके मुखसें एक आर्यधर्म संबंधी सुवचन सुना है तिसके प्रनावसे कालकरी देवता हुआ है, सो देवता तिस धर्माचार्यको निद देशसे सुनिक देशमें सहारे नजामसे गाम प्राप्त करे, बहुत कालके रोगांतक पीमितको निरोग्य करे तोजी तिस धर्माचार्यका देना नदि उतरे, कदाचित् धर्माचार्य केवली कथित धर्मसें भ्रष्ट होके जावे और वो जेकर फिर तिसी धर्म में स्थिर करे तो देना नुतरे. वाचकमुख्येनाप्युक्तं;-“ प्रतिकारौ मातापितरौ स्वामी गुरुश्च लोकेऽस्मिन्, तत्र गुरुरिहामुत्र च पुष्करतरप्रतीकारः " इति ॥ १॥ तिस वास्ते कृतज्ञ नाव करके नत्पन्न हुए गुरु बहु मानसे हमादि गुणांकी वृद्धि होती है, और धर्मकान्नी अधिकारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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