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द्वितीयखम
श्४३
होता है. घवल राजे के पुत्र विमलकुमारवत् इति एकोन विंशतिर्गुणः.
वीशमें पर हितार्थकारी गुणका स्वरूप लिखते है. इस गुणका स्वरूप नामसेंही प्रसिद्ध है. इस गुणवालेको धर्मकी प्राप्ति हुए जो फल दोवे सो कहते है. जो पुरुष स्वभावसेंद पर हित कर में अत्यंत रक्त है तिसको धन्य है. तिसने सम्यक् प्रकार से जाना धर्मका स्वरूप जाननेसें गीतार्थ हुआ है. इस कहनें सें गीतार्थ पर ति नहि कर शकता है तथा चागमः
" किं इत्तो कम्यरं जंसंममनाय समय सझावो, । अन्नं कुदेसाए कमियाके इति ॥ " १ ॥ इसके उपर तभी कोइ प्रतिशय करके कष्टतर अर्थात् पाप है, जो बिना जाणे Rice रहस्य कुदेशना करके अन्य जीवाकों प्रति कष्टमें गेरे है. पर हितार्थकारी पुरुष अज्ञात धर्मस्वरूपवाले जीवांको सद्गुरू पासे सुना है जो आगमवचन प्रपंच तिस करके धर्ममें स्थापन करे, और जिनोने धर्मका स्वरूप जाना है तिनको धर्मसें डिगता धर्ममें स्थिर करे, जीमकुमारवत्. इस कदने करके साधुकि तेरे श्रावकी धर्मोपदेश अपनी भूमिका अनुसार देवे यद कथन श्री जगवती सूत्रके दूसरे शतके पांचमे नदेशमे कहा दै. तथाच तत्पाठ:
तहा रूवं तं भंते समणंवा माहाणंवा पज्जुवासमाणस्स किंफला पच्जुवासणा गामाया सवणफला, सेणं भंते स वणे किं फले नाणफले, सेणं भंते नाणे किं फले विन्नाण फले, सेणं भते विन्नाणे किं फले पच्चखाणफले, सेणं भंते पंच्चखाणे किंफले संजमफले, सेणं भंते संजमे किंफले
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