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द्वितीयखम. "अहो कीरत्त्यानं मधुरमधुगावाज्यखंडान्वितं, चेसंश्रब्धौ दनौ मुखसुखकर व्यंजनेच्यः किमन्यत् । नपक्कान्नादन्यश्मयति मनः स्वाउ तंबोलमेकं. परित्याज्या प्राज्ञैरशनविषया सर्वदैवेति वार्ता" ॥१॥
अर्थ-वपाक, मीग गायका घी, खांझसे युक्त, दही और मुखमें सुखकरनेवाला शाक प्रमुखसे उसरा कोन है ? प. कान्न और तांबुल शिवाय दुसरा कोई मनकुं रंजन करनेवाला स्वादिष्ट नहि है. इत्यादि नोजन विषयकी वात प्राइलोको सर्वदा त्याग करते है. इत्यादि जक्तकथा न करे. ... "रम्यो मालवकः सुधान्यकनकः कांच्यास्तु किं वयंतां, गर्गागुर्जरनूमिरुनटनटालाटाः किराटोपमाः । कास्मीरे वरमुष्यता सुखनिधौ स्वर्गोपमाः कुन्तला, वा उर्जनसंगवच्छन्नधि. या देशी कथैवंविधा" ॥ १ ॥
अर्थ-मालवा देश रमणीय है. सारा धान्योर सुवर्णसे जरपूर है. कांची देशका वर्णन क्या करना ? गुजरात उगम है. लाट देशमें सूजट लोक उद्लट है. सुखका निधि कश्मिर देशमें रहेना अहा है, कुंतलदेश स्वर्ग जैसा है. ऐसी तरेहकी देशकया दुर्जनकी संगसे माफिक बुझ्मिान पुरुषे गेमी देना चाहिए. इ. त्यादि देशकथा न करे. - "राजायं रिपुवारदारणसहः हेमंकरश्चोरदा, युइं नीममनूतयोः प्रतिकृतं साध्वस्यतेनाधुना । अष्टोयं म्रियतां करोति सु. चिरं राज्यं ममाप्यायुषा, नूयोबंधनिबंधनं बुधजनैराज्ञां कया ही. यतां" ॥ १ ॥
आ राजा शत्रुका समूहका नाश करनेमें शक्तिवाला है. केम कुशल करनेवाला है; चौर लोककुं शिक्षा करनेवाला है, उस
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