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अज्ञानतिमिरजास्कर.
दो राजाकी बीच जयंकर युद्ध था. प्रो राजा दुष्ट है. सो म. रना चाहिए. ए राजा चिरकाल राज्य करते है. उसका राज्य में मेरा आयुष्यका बंध दो. एसी राजकथा पंकित लोमोकुं बोमना चाहिए. इत्यादि राजकथा न करे.
तथा श्रृंगार रसवाली, मतिको मोह उत्पन्न करनेवाला, दां स्त्री क्लेशकी जननेवाली, परके डुबण बोलनेवाली कथा न करे. जिन, गणधर, मुनि, सती प्रमुखकी सत्कथा करे. इति त्रयोददामो गुणः
सुप युक्त नामा चौदमा गुणका स्वरूप लिखते है. नवा होवे पक्ष, परिवार जिसका सो सुप युक्त है. अन्यकुं धर्म कर तेको विघ्न न करे. धर्मशील, धर्मी, सुसमाचारः --- सत् आचारका श्राचरवाला ऐसा जिसका परिवार दोवे तिसको सुपक्ष युक्त कहते है, तिनमें अनुकूल जसको कहते है जो धर्म करतेको साहाय्यकारी दोवे. धर्मशील वा धर्सप्रयोजनके वास्ते प्रार्थना करे तो अभियोग अर्थात् वगार न समजे अपितु अनुग्रह माने. सुसमाचारी दोवेतो जिसमें धर्मकी लघुता न दोवे ऐसा काम करे. राज्य विरुद्ध कृत्य न करे. पूर्वोक्त ऐसा परिवार जिसका दोवे सो सुप युक्त है सोइ धर्मके योग्य है. जनंद कुमार वत् इति चतुर्दशमो गुणः
पंदरमा दीर्घदर्शी नामा गुणका स्वरूप लिखते है. जो कार्य करे तिसका परिणाम प्रथम विचारके करे, सर्व कार्य परिणाम सुंदर, आवते काले सुख देनेवाला करे. जिस कार्य में बहुत लाभ दोवे और क्लेश महेनत थोडी होवे, बहुत स्वजन, परजन जिस कार्यकी स्तुति श्लाघा करे, शिष्ट जन जिस कार्यकी अच्छा - जाने ऐसा कार्य करे. सो पुरुष इस लोकमेंनी या देख पड़े
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