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हितीयखम.
शए मात्रकी दया करनी चाहिये, क्योंकि मनुष्य विना जितने जीव है तिनकी आत्मा अविनाशी नहि है, और जितने जीव है वे सर्व मनुष्यके लोग वास्तेही ईश्वरने रचे है. इसकों नत्तर,
हे नोले जीव ! यह समज तुमारी ठीक नही क्योंकि मनुष्य विना अन्य जीवांकी आत्मा अविनाशी नहि; इस कहनेम कोश्नी प्रमाण नहि है. प्रत्यक्ष प्रमाणसें तो जैसा मनुष्यांको मरतां देखते है तैसे पशु पदीयोकोंन्नी मरते देखते है, और अनुमानसें तो तब अविनाशी मनुष्यात्मा सिह होवे जब मनुप्यात्माका कोई ऐसा चिन्ह होवे और पशु आत्मामें न होवे, सो तो हे नहि. पशु पक्षीका आत्मानी अविनाशी है तिसकी सिदिमे अनुमान प्रमाण है, सो यद है. मनुष्यात्मासें निन्न जितने आत्मा है यह पद है; सर्व अविनाशी है यह साध्य है; आत्मत्व जातिवाले होनेसं यह हेतु है; मनुष्यात्मवत् यह दृष्टांत है; इस अनुमानसें पशुओका आत्मानी अविनाशी सिह होता है. तथा जिस पदार्थका नपादान कारए नहि सो अविनाशी है, सो पशु पकीओका आत्माकानी नपादान कारण नहि है इस वास्ते अविनाशी है, परंतु जो कोई किसी शास्त्रमें पशु पहायोका आत्माको विनाशी कह गया है सो मांस खानेकी लोलुप्ता, अ. विवेक बुद्धिके प्रत्नावसे नसने ऐसा मनमें समजा होगा कि मांस खानातो मेरेसे बुटता नहि है इस वास्ते जिसका मांस खाने में आता है वे आत्मा विनाशी कहे तो ठीक, हमारा काम चलेगा, मांसनी खायगे और स्वर्गमेंनी जावेंगे. फिर ऐसे फुड पंयको मांसाहरी, निर्दय, अनार्य जीव क्यों न अंगीकार करे इस वास्ते जो, मनुष्य विना अन्य सर्व जीवात्माको विनाशी मानते है वो निपुण और बुद्धिमान् नहि है. कितनेक कहते है के ईश्वरने सर्व
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