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अज्ञानतिमिरनास्कर. “जयंचरे जयंचिंठे जयंमासे जयंसए जयंजतो नासंतो पावकम्मं नबंध " ॥१॥ व्याख्या, र्यासमिति अर्थात् नपयोग सहित चार हाथ प्रमाण अगली नूमि देखे और जीवांको बचाके पग धरी चले सो यतनासें चलना कहिये. हस्त पगादिकके विकेप विना यतनासें खमा रहे. नपयोग पूर्वक यतना. से बैलें. अकुंचन प्रसारणादि करे. नूमिका नेत्रोंसे देखके रजोहरणादिसें प्रमार्जके पीछे शय्या करे. यतनासे सोवं. समाहित रा. त्रिमें प्रकाम अर्थात् अधिक शय्या वर्जे और चैत्यवंदन पूर्वक शरीर प्रतिलेखी सामायिकसूत्र, पोरसीसूत्र पठन करी सोवे यतनासें नोजन करे. बं कारणसें नोजन करे. बहु सरस आहार न ले नोजन करे तब प्रतर सिंहादिककी तरें तरें जोजन करे. यतनासें बोले. साधु नाषासें, मृ; कालप्राप्त, अकर्कश, अमर्मवेधिनी नाषा बोले. इस हेतुसे पापकर्म ज्ञानावरणादि न बांधे. अन्योने पण कहा है.
न सा दीक्षा नसा भिक्षा न तदानं न तत्तपः । न तज्ञानं न तद्ध्यानं दया यत्र न विद्यते ॥१॥
अर्थ-जिसमें दया नहि है, सो दीक्षा, निका, दान, तप, झान और ध्यान, बराबर होताज नहि.
इस वास्ते धर्माधिकारमें दयालु, योमानी जीववधका, यशो धर सुरेदत्त महाराजाकी तरे दारुण विपाक जानना दूआ तिनमें नहि प्रवृत्त होता है. सर्व मतावाले लोक दयाको अच्छी कहते है परंतु दयाका यथार्थ स्वरूप जानना बहुत कठिन है. दोहा " दया दया मुखसें कहे, दया न हाट विकाय; जाति न जाने जीवकी, दया कहो किन गय." ॥१॥ कितनेक नोले जीव कहते है और उनके शास्त्रमेंनी वेसाही लिखा है कि एक मनुष्य
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