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________________ २० अज्ञानतिमिरनास्कर वस्तुओ मनुष्यके लोग वास्ते बनाई है. प्रश्रम तो यह कहनाही मिथ्या है क्योंकि ईश्वर किसी प्रमाणसें इस जगतका रचनेवालाः । सिह नदि होता है. प्रो कथन जैनतत्वादर्शमें अच्छी तरतें लिखा है. जेकर विना प्रमाण मिथ्यात्वके नदयसें जगत्कर्ता माने और पूर्वोक्त कथन करे तब तिसको ऐसे कहना ठीक है. जब को किसीकी माता, बहिन बेदीसें गमन करे, और अपनी माता, बहिन, बेटीसें गमन करै, माता, बहिन, बेटीके हरके ले जावे. किसीका धन चोरे, तब सरकारसे दंड और जगतमें अपयश और दम क्यों पाता है ? जेकर नसने अनीति और अगम्यगमन करा इस वास्ते वो दंड और अपयशके योग्य है तब तो अपराधी कहेगा कि मनुष्यके लोग करा है, मुजे दंग क्यों देते हो, जेकर ये स्त्रीमो मेरे लोग योग्य है तिनके वास्ते जो ईश्वरवें तुमको परवाना लिख दिया है सो मुजे दिखलाना चाहिये. इस वातका फिर उत्तर दो तो दीजिये. इस वास्ते हम नोलें जीवांके वास्ते लिखते है, ऐसा मत मानोगे तो नन्नय लोकसें ब्रष्ट, और अन्यायी बन जाओगे. इस वास्ते ऐसी उर्गति त्यागके अहंत नाषित मतको स्वीकार करो जिस्से तुमारी अंतर्दृष्टि उघमे, सत्यासत्यकी मालुम पमे... तथा कितनेक कहते है के मनुष्यके नोग वास्ते सर्व वस्तु ईश्वरने रची है, तो माकम और जुयां लीखां ये मनुष्यके शरीरको खाते है, और सिंह, व्याघ्र, बाज प्रमुख निःकेवल पशु पदीओकाही मांस खाते है, और सिंहादिक मनुष्यका लक्षण करते है, तथा समुश्के मच्छ लाखों मच्छकोही खाके जीते है. तथा कितनेक पशु पक्षी, घास, पान, अनादि खाके जोने है तो फिर यह कहना, सर्व वस्तु परमेश्वरने मनुष्यके वास्तेही रची है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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