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अज्ञानतिमिरनास्कर. सका चेला महासिंह, तिसका चेला खुशालराय, तिसका चेला. उजमल, तिसका चेला रामलाल, तिसका चेला अमरसिंह, इसके चेले पंजाब देश में मुह बांध। फिरते है. और कानजीके चेले. मालवा और गुजरात में मुह वांधी फिरते है. और धर्मदास बीपीके चेले गुजरात, मालवा और मारवाममें मुंह बांधी फिरते है. इति प्रवेशिका..
ऐसे कुमाताओके मतोके आग्रहसे दूर होकर हेयोपादेयादि पदार्थ समूहके परिज्ञानमें जीवको प्रवीग होना चाहिये, और जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक्तादिकों करके पीमितको स्वर्ग मोकादि सुख संपदके संपादन करणेमें अबंध कारण ऐसा धर्मरत्न अंगीकार करणा नचित है, क्योंकि इस अनादि अनंत संसार समुश्में अतिशय करके ब्रमण करणेबाले जीवांको प्रथम तो मानुष्य जन्म, आर्यदेश, नत्तम कुल, जाति, स्वरूप, आयु पंचेश्यिादि सामग्री संयुक्त पावणा उर्लन है. तहांनी मानुष्यपणेमें अनर्थका हरणहार सतधर्म पावणा अति झन है. जैसे पुण्यहीन पुरुषको चिंतामणि रत्न मिलना उर्लन है तैसें एकवीश गुण करी रहित जीवको सर्वज्ञ प्ररूपित सत्धर्म मिलना उर्लन है.
इस वास्ते प्रश्रम तिन एकवीश गुणांका स्वरूप किंचित् एकवीश गुण मात्र लिखते है, क्योंकि प्रथम नव्य जीवांको अ
का स्वरूप. पणेमें धर्मी होनेकी योग्यता नप्तन्न करनी चाहिये. जेकर प्रथम योग्यता नत्पन्न न करे तबतो धर्मकी प्राप्तिन्नी प्रथम न होवे. जैसे अयोग्य नूमिमें वीज बोया निष्फल होता है तथा जैसे नींब अर्थात् पाया दृढ किया बिना जो महा प्रसाद बनाना चाहता है वो जबतक पाया दृढ नहि करता है तब तक विशिष्ट प्रासाद
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