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द्वितीयखंम. नहि माना, और एकत्रीस सूत्रोंमें जहां जहां जिनप्रतिमाका अधिकार था तहां तहां मन कल्पित अर्थ कहने लगा. इस तरें कितनेक लोगोंकों जैन मार्गसें भ्रष्ट करा. नूणेका शिष्य संवत १५६७ में रूखजी हुआ. तिसका शिष्य संवत् १६ ६ में वरसिंह हुआ. तिसका शिष्य संवत् १६धए में महा सुदी १३ गुरूवार प्रहर दिन चमे जशवंत दुआ. इसके पीछे संवत् १७णए मां वजरंगजी लुंपकाचार्य हुआ. तिसके पीछे सुरतके वासी वोहोरा वीरजिके बेटी फुलांबाश्की गोदी लीए बेटे लवजी नामकनें दिदा लिनी. दीक्षा लिया पीने जब दो वर्ष हुए तब दस वैकालिकका टबा पढा. तब गुरुको कहने लगा तुम साधुके आचारसें ब्रष्ट हो इसी तरे कहनेसे गुरुसे लडाइ हुश्, तब ढुंपक मत और गुरुकुं. वोसराया. और रीष श्रोन्नण और सखीओजीकों वहकाके अपने साथ लेके स्वयमेव दीक्षा लिनी, और मुहडे पाटी बांधी, इसका चेला सोमजी तथा कानजी हुए, और लुपकमति कुंवरजीके चेले धर्मसी, श्रीपाल, अमीपालनेनी गुरुको गेडके गेड़के स्वयमेव दीक्षा लिनी. तिनमें धर्मसीने अष्ठ कोदी पञ्चखाणका पंथ चलाया सो गुजरात देशमें प्रसिद है. और लवजीके चेले कानजीके पास गुजरातका एक धर्मदास बीपी नामक दीक्षा लेनेकुं पाया, परंतु कानजीका आचार नसने ब्रष्ट जाना. इस वास्ते मुहके पाटी बांधके वोली साधु बन गया. इनके रहनेका मकान ढुंढा अर्थात् फुटा हुआ था इस वास्ते लोकने ढुंढक नाम दिया. धर्मदास बीपीका चेला धनाजी हुआ. तिसका चेला नूधरजी हुआ, तिसके चेले रघुनाथ, जैमलजी, गुमानजी हुए. इनका परिवार मारवाममें है. रघुनाथके चेले लीषमनें तेरापंथी मुहबंधेका मत चलाया सवजिका चेला सोमजी, तिसका चेला हरिदास, तिसका चेला वैदावन, तिसका चेला नवानीदास, तिसका चेला मलुकचंद, ति
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