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अज्ञानतिमिरनास्कर. इनके न तो देव है, और न गुरु है. बहुती वातां इनके मतोमें स्वकपोलकल्पित है. इनका वेषत्नी जैनमतका नहि है, इनकी उत्पत्ति ऐसी है.
__गुजरात देशके अहमदावाद नगरमें एक लौंका नामका लिखारी यतिके नपाश्रयमें पुस्तक लिखके अजीविका चलाता था. एक दिन नसके मनमें ऐसी वेश्मानी आइ जो एक पुस्तकके सात पाना बिचमेंसें लिखने गोड दीए, जब पुस्तकके मालिकने पुस्तक अधूरा देखा तब लुके लिखारीकी बहुत नमी करी
और नयाश्रयमेंसे निकाल दिया, और सबको कह दिया कि इस बेश्मानके पास कोश्नी पुस्तक न लिखावे. तब लुका आजीविका तंग होनेसे बहुत दुःखी हो गया. और जैनमतका बहुत देषी बन गया. परंतु अहमदावादमें तो लुकेका जोर चला नहि, तब तहांसें ध५ कोस पर लिंबमी गाम है वहां गया. तहां लुकेका संबंधी लखमसी वाणिया राज्यका कारनारी था. तिसको जाके कहा कि नगर्वतका धर्म लुप्त हो गया है; मैनें अहमदावादमें सच्चा उपदेश करा था. परंतु लोकोंने मुजको मारपीटके निकाल दिया. जेकर तुम मेरी सहाय करो तो में सच्चे धर्मकी प्ररूपणा करु. तब लखमसीने कहा तु लिंबडीके राज्यमें बेधडक तेरे सच्चे धर्मकी प्ररूपणा कर. तेरे खानपानकी खबर में रखंगा. तब लुकेनें सवत् १६०७ में जैन मार्गकी निंदा करणी शुरु करी. परंतु २६ वर्ष तक किसीने इनका नपदेश नहि माना. पीने संवत १६३५ में अक्कलका अंधातूपणा नामक वाणिया लुकेको मिला, तिसने लुकेका नपदेश माना. लुकेके कहनेसे विना गुरुके दिये वेष पहना ओर मूढ लोगांकों जैन मार्गसे ब्रष्ट करना शुरू किपा, लोकेने एकत्रीश शास्त्र सच्चे माने, ओर व्यवहार सूत्र सच्चा
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