SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयखम. वहारके स्वकपोलकल्पित अनेक ग्रंथ बनाये. जिस्से श्वेतांबरोकों कोश्नी साधु न माने. बहुत कठिन वृत्ति कथन करी. परतुं यह नहि समजके पमोशीके कुशौन करनेको अपना नाक कटवाना अच्छा नहि. दिगंबरोने करिन वृति कथन करके श्वेतांबरोकी निंदा तो करी, परंतु अपने मतका साधुओका सत्यानाश कर डाला. ऐसी वृत्ति पालनेवाला नरतखंझमे इस पंचम कालमें हो नहि शकता है. तथा एक ओर मूर्खता करी, जो वृत्ति चतुर्य कालके वजऋषन संहननवालोंके वास्ते थी, सो वृत्ति पंचम कालके सेवा संहननवालोके वास्ते लिख मारी. जब दिगंबरोमें कशाय नत्पन्न न तब इनके चार संघ नये. काष्टासंघ २ मूल संघ २ मा थुर संघ ३ गोप्य संघ ५. चमरी गायके वालोकी पीछी काष्ठा संघमे रखते है, मूल संघमें मोरपीली रखते है, माथुर संघमें पीजी रखते नहि है, ओर गोप्य संघ मोरपीगी रखते है. गोप्य संघ स्त्रीकोनी मोक करते है, शेष तीन नहि करते हैं गोप्य वंदना करने वालेको धर्मलान कहते है, शेषतीन धर्मवृद्धि कहते है. अब इस कालमें इस मतके वीश पंथी, तेरापंथी, गुमानपंधी इत्यादि नेद हो रहे है. तीनमें वीशपंथी पुराने है. शेष दोनो नवीन है, इति अष्टमो निन्दवः ढुंढकमतकी इस पीने संवत् ११६ए में पुनमी संवत् ११३ उत्पत्ति में अचलीश्रा, संवत् ११३६ में साढपुनमीया, सं वत् १२६० में आगमीमा, संवत् १२०४ में खरतर, संवत् १६७२ में पासचंद हुआ. इनके वेषमें विशेष फर्क नहि है. जिन प्रतिमाकी पूजामेंनी फर्क नहि है, किंतु किसी वातकी श्रझमें फरक है. सो खेंचातान नहि करता सो अच्छा है. इनके शिवाय चुपक और ढुंढक तथा तेरापंथी ढुंढक ये तीनो पंथ गृहस्थके चलाये है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy