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अज्ञानतिमिरजास्कर.
ज्ञान ६ जिनकल्प उ पुलाक लब्धि प्रदारक लब्धि ए मुक्ति
दोना १०.
इस वास्ते जिनकल्प इस कालमें व्यवच्छेद है. तब शिवभूति बोला तुम कायर दो, मैं जिनकल्प पालुंगा. गुरुनें बहुत समजाया, सो विशेषावश्यकसें जान लेना. तब शिवभूति सर्व वस्त्र ahhh नग्न हो गया. तब तिस शिवनूतिकी बहिन उत्तरा नामे थी, तिसनेंजी नाइकी देखा देख वस्त्र फेंक दीए, और नग्न हो ग. जब नगर में निक्षाको प्राइ तब वेश्याने झरोंखेसे नसके छपर एक वस्त्र ऐसा गेरा, जिस्से उसका नम्रपणा ढांका गया. तव जाइको कहने लगी कि मुजको देवांगनानें वस्त्र दिया है. जव जारकोजी नग्न फिरती बुरी लगी, तब कहने लगा तुं वस्त्र रख ले, तेरेको (स्त्रीको) मुक्ति नहि. तिस शिवभूतिको दो चेले हुए, कौडिन्य. १ कोष्टवीर. २ तब तिनके चेले नूतिवलि और पु-पदंतनें श्रीमहावीरसें ६८३ वर्ष पीछे ज्येष्ट सुदि ५ के दिन तीन शास्त्र रचे. धवलनामा ग्रंथ 30000 सित्तेर हजार श्लोक प्र माण, जयधवल नामा ग्रंथ ६०००० साठ हजार श्लोक प्रमाण, महाधवल नामा ग्रंथ ४०००० चालीस हजार श्लोक प्रमाण. ये तीनों ग्रंथ कर्णाटक देशकी लिपी में लिख गये. और शिवभूतिके नम्र साधु बहुलताई कर्णाटक देशको तर्फ फिरते है. क्योंकि दक्षिण देश में शीत थोमा पकता है. जब कालांतर पाके मतकी वृद्धि हो गइ तब जगवंतसें १००० हजार वर्ष पीछे इस मतके धारक आचार्योंके चार नाम रखे. नंदी, सेन, देव, सिंह जैसे पद्म नंदी १ जिनसेन १ योगीं देव ३ विजयसिंह ४ इनके लगनग कुंदकुंद, नेमचंद, विद्यानंदी, वसुनंदी आदि प्राचार्यो जब हुए तब तीनोंने श्वेतांबरकी दीनता करने वास्ते मुनिके प्राचार व्य
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