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अज्ञानतिमिरनास्कर, सिख लोग गुरुके सिखांको जिमावे,अखामेके साधु मंदिरोंके साधुयोंको जिमावे और ब्राह्मण बिचारे खाली बैठे मुख नपरसेंमकीयां नमावे; जव सर्वमतांवाले अंतमें वेदस्मृति पुराणादिकोंकों मानते हैं. तो फिर नवीन ग्रंथ बनाना और पंथ निकालनेका क्या. प्रयोजन है. यहतो नवीन पुस्तक और पंथ निकालनेसे हिंऽस्तानीयोंका फजीतां करणा है, क्योंकि बहुत पंथोंकें न्यारे न्यारे पुस्तक देखके लोकोंकीधर्मर्से श्रक्षा व्रष्ट हो जाती है.वे कहते है-हम किसको सच्चा और किसको जूग माने. यहनी वात.याद रखनी चाहिये. कि जव ब्राह्मणोंका जोर हुआथा तब वेदोंके न माननेसे बौधमत वालोंके बच्चोंसे लेकर वृक्ष्तक हिमालयसे लेकर सेतुबंधरामेश्वर तक कतल करवाये. ये वात माधवाचार्य अपने बनाये शंकरदिग्वि जयमें लिखता है. “आसेतोरातुषाराज्ञिनां वृक्ष्वालकान न हंति यः स इंतव्यो नृत्य इत्यवशं नृपः॥” “ सेतुबंधरामेश्वरसे हिमालयपर्यंत बौइ लोकोका आ बालवृकुं जे पुरुष मारता नहीं है, सो पुरुष राजा लोकोकुं इंतव्य है.” हम धन्य वाद देते है, अंग्रेजी राजको जिनके राजतेजर्से सिंह बकरी एक घाट पानी पीते हैं. मकर नही किसी मतवालेका जो किसी धर्मवालेकों. गर्म आंखसें देख शके.
आस्तिक और एक और बात बहुत आश्चर्यकी है कि हमने किनास्तिक मतका विचार तनेक पुस्तकोंमें तथा ब्राह्मणोंके मुखसें सुना है कि जैनमत नास्तिक है. यह कहना और लिखना सत्यदैवा असत्य है ? हमारी समजतो यह कहना और लिखना जूठ है.क्योंकि जो कोई नरक, स्वर्ग, पापपुण्य ईश्वरकों तथा पूर्वोत्तर नवानुयायी अविनाशी आत्माको नही मानते है वे नास्तिक है तथा जिस शास्त्रमें जीवहिंसा, मांसनक्षण, मदिरापान, परस्त्रीगमन करनेसे पुण्य, धर्म, स्वर्ग मोक्का फल लिखा है तिन शास्त्रोंके
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