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________________ ย अज्ञानतिमिरजास्कर. बनाने और माननेवाले नास्तिक है. जैनमतमेंतो नपर लिखे ना स्तिक मतके लक्षणोंमेंसे एकनी नही है तो फेर जैनमतकों नास्तिक कहना जूट है. साहिब तुम नही जानते नास्तिक नसक कहते है, जो वेदोकों न माने. जैन बौध वेदोकों नही मानते है, इस वास्ते नास्तिक कहे जाते है. यह कहना मूर्खोका है, अप्रमाणिक होनेसें. क्योंकि किसी मूर्खनें सुवर्णको पीतल कह दीया तो क्या सुवर्ण पीतल हो जावेगा ? ऐसेंतो सर्व मतांवाले कह देवेंगे हमारे मतके शास्त्रकों जो न माने सो नास्तिक है, जैनी, करानी, मुसलमान ये सर्व कह देवेगे हमारे द्वादशांग, अंजील, कुरानको जो न माने वो नास्तिक है. तथा कुरानी, मुसलमान, यहुदी प्रमुख सर्व नास्तिक ठहरे क्योंकि वे वेदको नहीं मानते है. इस वास्ते न्यायसंपन्न पुरुषोंकों विचार करना चाहिये जो मांस मदिराके खाने पीने वाले और ठगबाजीसें लोगोंका उगने वाले. डुराचारी, ब्रह्मवर्जित, लोगोंका मरण चिंतनेवाले छल दंनसें लोगोंकी चडी दामीयोंके फोडने वाले, असत्यभाषी, व्रतप्रत्याख्यानसें रहित, महालोजी स्वार्थतत्पर, लोगोंकों भ्रम अंध कूपमें गेरनेवाले, दयादान परोपकारवर्जित, अभिमानी, सत्साधुयोंके द्वेषी मत्सरी, परगुण सहनशील, अज्ञान, मूढ पंथके चलाने वाला, परवस्तु के अभिलाषी, परस्त्रीगामी, दृढकदाग्रही, सत्शास्त्रके वैरी इत्यादि अनेक rayer करके संयुक्त जो है वे प्रत्यक्ष राक्षस और नास्तिक है और जो दयादानवान्, मद्य मांसके त्यागी, परमेश्वरकी भक्तिपूजा करनेवाले, करुणाईन्हदय, संसारके विषयभोगोंसें नदासीन अष्टादश दूवणकरी रहित ऐसे परम ईश्वरके नपासक इत्यादि अनेक शुनगुणालंकृत होवें वे प्रास्तिक है. अब बुद्धिमान आपदी विचार लेंगे आस्तिक कौन है और नास्तिक कौन है. अ पने बोर मि श्रौरोंके खट्टे यहतो सर्व मतांवाले कहते है. परंतु य " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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