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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर सिंदके पंथके बहुते निर्मले साधुश्रो गुरुका वेष ककरद चकरी केश प्रमुख छोडके धातुरंगे वस्त्र कमंगलु प्रमुख वेष अन्यमतके साधुयोंका चिन्ह धारण करते है, और अपने गुरुका ग्रंथ गेडके वेदांत मानते है. ऐसेंही दाऽपंथी निश्चलदास दाजीका बनाया ग्रंथ गेमके वैदांतिक बन गया.और दाजीके चेले सुंदरदासने सांख्य मत माना है. तथा गरीबदासीयत्नी प्रत ब्रह्मवादी परमहंस बने फिरतेहै. यह तो हम जानते है कि जिसको अपने घरमें टुकमा खानेकों नही मिलता वोही उसरे घर मांगने जाता है, परंतु अपने घरके मालिककी हजों होतीहै. इस लिखनेका प्रयोजन तो इतनाही है कि वैदांतियोंके पुस्तकतो ननोंके गुरुयोंके समयमेंनी विद्यमान थे तो फिर नविन पुस्तक बनानेकी क्या जरुरथी. बिचारे क्या करे, जे कर वेदोंको न मानेतो ब्राह्मण लोग झटपट ननकों नास्तिकमती बनादेवें. फिरतो ननकी महिमात्नक्ति बंध हो जावे क्योंकि वेदोंके असल मालिक ब्राह्मण है. जे करतो ब्राह्मणोंके अनुयायी रहें और ब्राह्मणोको किसी आजीविकाका नंग न करे तबतो गक बने रहेंगे, नहींतो ब्राह्मण बल पाकर नन साधुयोंकों राजाप्रोके राज्यसे बाहिर निकलवा देवें बौधमतवत्. और ननके बनायें पुस्तकोंको पानिमें गलवा देवें जैसे दक्षिण में तुकाराम साधुके पुस्तक रामेश्वरनट्टने नीमानदीमें डुबवादीए क्योंकि तुकाराम साधु नक्तिमार्गका नपदेशक था. नसके बनाए पुस्तकोमें यझोकी और ब्राह्मणोंकी निंदा लिखी है. इसी वास्ते जो कोई बाबा नक्त नवीन पंथ निकालता है, वोतो अपने हठसे अपने निकाले मतका पूरा निर्वाह करता है, परंतु नसके चेलोंकी दाल ब्राह्मण नही गलने देते है. इसी वास्ते जो नवीन पंथ निकलता है वो अंतमे वेद और ब्राह्मणोंकी चरणशरण जा गिरता है. ये अंग्रेजी राज्यही का माहात्म्य है जो वैरागी नंमारा करके वैरागीयोंकों जिमा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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