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ខុសច
अज्ञानतिमिरनास्कर. का नाम जैनमतके शास्त्रमें यशोदा लिखता है यही मिलता है परंतु ललित विस्तरा नामके बौ६ मतके शास्त्र में शाक्यमुनिकी स्त्रीका नाम गोपा लिखा है, इस वास्ते लोकोने श्रीमहावीर स्वामिकोही शाक्यमुनिके नामसें लिखा है.
नगवंतश्री महावीर स्वामिको केवल कान हुआ जब १४ निका चौहद वर्ष हुए तब नगवानका शिष्य जमालि स्वरूप.. नामा प्रथम निन्दव दुआ, निन्दव नसको कहते है जो नगवंतके कहे ज्ञानमेंसें एक वा दो वचन न श्रहे. इस जगालिने नगवंतका एक वचन नहि माना. नगवंततो निश्चय मतसे क्रिया काल-और निष्टाकाल अर्थात् क्रिया और तिस क्रि यासे नुत्पन्न हुआ कार्य एकही समयमें मानना कहते थै, औरजमालोने व्यवहार नयके मतको मानके क्रिया और कार्य निन निन्न कालने मानके पूर्वोक्त श्रीमहावीरके वचनको मिथ्या ठहराये. जमालीने अपना मत श्रावस्ती नगरीमं निकाला, परंतु जमालीका मत जमालीके साथही नष्ट हो गया, जमालीके मरां पीने इस मतवाला कोइ नहि रहा. इति प्रश्रमो निन्दवः. . श्रीमहावीरको केवलझान हुआ जब सोलह १६ वर्ष दुए तब राजगृह नगरमें तिष्यगुप्त नामा दुसरा निन्दव हुआ, सो वसु आचार्यका शिष्य था. तिसको आत्मप्रवाद पूर्वक आलावा पढते हुएको यह श्रान दुआ जो आत्माका एक अंतका प्रदेश है. सोइ जीव है. तब तो गुरु प्रमुख बहुत बहुश्रुतोनें इनको समजाया परंतु हट नही गेमा. जब तिष्यगुप्तको अमलकल्पा नगरीके मिन्नश्री श्रावकने समजाया तव हठ गेड दीया. इसका पंयनी नहि चला. इति छितीय निन्दवः,
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