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________________ हितीयखम.. १७ सामिल है, तथा सर्व मुसलमान मक्केमें हज करनेंकोजाते है. मक्कमें श्याम पथ्यरके वोसे लेते है. मदीनेमें जाते है, यह नी सर्व मूर्ति पूजनमें दाखिल है. तथा जो पुस्तक मतधारीप्रोकी है वे सर्व परमेश्वरकी बनाई कहते है; तबतो जो पुस्तक पत्रोंमें लिखें जाते है वे सर्व मूर्त्तिकें माफक है. तथा सुंदर कामिनीके अद्भूत रूपकी मूर्ति देखनेसे जैसे कामीकों काम नत्पन्न होता है तैसा वीतरागकी मूर्ति देखके नक्त जनांको नक्तिराग नुत्पन्न होता है. तश्रा जो कहता है कि नूतिं हाथोकी बना है तब तो पुस्तकनी दायोके बनाये है तिनकोंनी न वांचना चाहिये. पूर्वपद-पुस्तक वांचनेसेतो ज्ञान होता है. नत्तरपद-वीतरागकी प्रतिमाको देखनेसेनी वीतरागकी अवस्था याद आनेसं वैराग्य और नक्ति नुत्पन्न होती है. प्रश्न-प्रतिमाको चोर चुरा ले जाते है. मूसे मूत जाते है, म्लेंच्छ खमन कर देते है, तो प्रतिमा हमको क्योंकर तारेगी.. नत्तर-पुस्तकन्नी पूर्वोक्त दूषणों संयुक्त होनेसे वाचने वालेको कुच्छन्नी नपकारक न होने चाहिये. जैसे प्रतिमा पाषाणादिककी है तैसे पुस्तकन्नी स्याही और सणिके है. जैसे प्रतिमा विकती है तैसे पुस्तकत्नी विकते है. जैसे प्रतिमा तालेके अंदर दीनी जाति है तैसे पुस्तकनी तालेके दीये जाते है. इस वास्ते जो पुरुष प्रतिमाकी निंदा करते है. और पुस्तकांको परमेश्वरकी वाणी मानते है, और तिनको वांचते है, और आदर करते है वे निर्विवेकी है. और जो दयानंद प्रतिमाकी निंदा करता है. सोनी तैसाही समजना क्योंकि जैनाचार्य, बौध, गौतम, कपिल पतंजलि, कणाद, व्यास प्रमुख महातार्किकोने मूर्तिपूजनका नि: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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