________________
१८६
अज्ञानतिमिरजास्कर.
मतमें है तो फिर
ठहर सकता है ? परंतु समु
अक्कलके अजीता है, क्योंकि जैन मतमें जो जो कथन सो सो तो बौद्ध मतमें है और नतो वैदिक जैन मत पूर्वोक्त मतों की बातोंसें वना क्योंकर क्योंकि सर्व नदीयां समुझमेंतो प्रवेश करती है, किसीजी एक नदी में नहि समा सकता है. इसी तरें जैनमत स्याद्वादरूप समुइ है. तिसमें तो सर्व मतां नदीयां समान स मा सकते है परंतु जैनमत समुह समान किसीजी एक मतमें नहि समा शकता है, जैन मतकीही बातां लेकर सर्व मत बने है.
मूर्तिपूजाका मंडन.
कितनेक यही कहते है कि जैन मतमें मूर्त्तिपूजनका कथन है और मूर्त्ति पूजनका आज काल बहुत बुद्धिमान घुया करते है. इस वास्ते जैन मत वा नहि. इसका यह है कि मूर्त्तिके विनामाने किसनी बुद्धिमानका काम नहि चलता है. प्रथम तो बुद्धिमान सर्व मुलकोके अरु ग्राम नदी, पर्वतादिकके नक्शे बनाते है. और तिन नकशा द्वारा असल वस्तुका स्वरू पका निश्चय करता है. हिंदुयोंके मतमें तो अपने अपने इष्ट देवकी मूर्त्ति पूजन प्रसिद्ध है. और ईसाई मतवाले अपनी बापी दुइ कितनीक पुस्तकों के उपर इसाकी मूर्ति, जैसा शूलि देनेकुं ले चलेका रूप था तैसा बापते है जिससे देखने वालेको इसामसीही वस्था याद आवे तथा रोमनकेथोलिक पादरी इसाकी मूर्ति मानते है. और मूर्ति न माननेवालाको नवीन मतवाला कहते है. तथा मुसलमानों में जो सिया फिरकेके मुसलमान है वे मोहरम में ताबुत बनाते है और दुलकुल घोडा निकालते है अपने इमामोकी लाश बनाते है यह सर्व मूर्त्ति पुजनमें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org