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________________ १४ अज्ञानतिमिरनास्कर. उत्तर-महानिशीय सूत्र में गौतम गराधरे पृचा करीके हे नगवन् ! तुमारा शासन किस समयमें अत्यंत तुछ रह जावेगा अर्थात् जैन धर्म बहुत हीण हो जावेगा? तब जगवंतनें कहा, है गौतम ! जब कलंकी राजा होवेमा तव तिलके राज्यमें मेरा शासन बहुत तुब रह जावेगा, और तिस कलंकी राजाके राज्यांतमें श्रीप्रन्न नामा युगप्रधान आचार्य हावेगा तिस आचार्यसें फेर मेरे शासनकी वृद्धि होवेगी. परंतु महानिशीथ सूत्र में संवत् नहि लिखा है इस वास्ते युगप्रधान गंडिका और दुष्यमसंघस्तोत्र यंत्र में लिखा है कि श्रीप्रन्न आचार्य आग्में उदयमें आदि आचार्य होवेगा तिसके समय में कलंकी राजा होवेगा. इस वास्ते दिवाली कपादि ग्रंथ देखके व्यामोह न होना चाहिये. जो जो राजा नारी पापी, धर्मका विरोधी, प्रजाका अहितकारी होवेगा तिस तिसका नाम कलंकी जाननाकिसीका नाम अर्धकलंकी, नपकलंकी जानना. इस वास्ते जा. नना के कलंकी राजा बहुत होवेगा. इसकी साथ तेवीस नदयका यंत्र दिया जाता है, तिसमें श्रीप्रन आचार्य मालुम हो जावेगा. दयानंद सरस्वतोने लिखा है कि जैनाचार्येने अपना मत गुप्त रखने वास्ते धूर्तताले वामीयोकी तर संकेत करी है. उत्तर इसका यह है. दयानंद सरस्वतीने प्राकृतका व्याकरण नहि पढा है इस वास्ते दयानंद सरस्वतिकी बुहिमें नासन नहि होता है. कबी ननोने प्राकृत व्याकरणका अन्यास करा होता तो ऐसा कवी नहि लिखता. दयानंदके जो वेद है तिसकी श्रुतियां ऐसी रीतिसें बनाई है कि जिसमें बहुत अक्षर निरर्थक है, और वेदोकी संस्कृतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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