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________________ द्वितीयखम. २७ फेंक देवे तैसें प्रोसबालादि कितनेक बनीयोका धर्म कुलगुरुप्रोने गेम दिया है. ___ अब तवारीख अर्थात् इतिहास लिखनेवाला लिखता है. जैनमत संवत ६०० में बौह और शंकरकी लमाइमें नुत्पन्न हुआ है तिसकी समजन्नी ठीक नहि, समजके अन्नावसे जोचाहा सो अप्रमाणिक लिख दिया. क्योंकि ब्राह्मण लोकोके मानने मुजव और तवारीख लिखनेवालेकी समज मुजब श्रीकृष्ण वासुदेवको हुए 4000 हजार वर्ष हुए है, तिनके समयमें व्यासजी वैशंपायन, यादवल्क्यादि वेदके संग्रह कर्ता और शुक्ल यजुर्वेद शतपथ ब्राह्मणादि शास्त्रोंके कर्ता दुये है. तिनमें सर्वसें मुख्य व्यास ऋषिनें वेदांत मतके ब्रह्मसूत्र रचे है तिसके दुसरें अध्यायके उसरे पादके तेतीसमें सूत्र में जैनमतकी स्याहाद सप्तनंगीका खंमन लिखा है. सो सूत्र यह है. नैकस्मिन्नसम्भवात् ॥ ३३ ॥ इस सूत्रकी नाष्यमें शंकर स्वामीने सप्तन्नंगीका खंडन लिखा है सो आगे लिखेंगे. जब व्यासजीने जैनमतका खेमन लिखा तब तो व्यासजीके समयमे जैनमत विद्यमान था, तो फिर व्यासस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, शुक्लयजुर्वेद, शतपथ ब्राह्मणादिकमें जैनमतका नाम न लिखा तथा अन्य वेदोंके बनानेके सममेंनी जैनमत विद्यमान था तोनी जैन मतका कथन न लिखनेसे जैनमत नवीन क्योंकर कह सकते है ? व्यासजीसे पहिले तो चारों वेद नहि थे. ऋषियों पास यज्ञ अर्थात् जीवोंके हवन करनेकी श्रुतियों श्री. तिन हिंसक श्रुतियोंमें अहिंसक जैनधर्मके लिखनेका क्या प्रयोजन या ? कदापि निंदारुप लिखा होगा तो या विध्वंसकारक, राक्षस, दैत्यादि नामोंसें लिखा होगा. इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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