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________________ १७ अज्ञानतिमिरनास्कर. नामा राजाको नजराणा करें. राजाने तुष्टमान होके नपकेश पट्टनकी जगा दीनी. तिहां नहम मंत्रीने अपने राजा नत्पलदेवके रहने वास्ते पट्टन नामा नगर बसाया. तिस नगरीमें श्रीरत्नअनसूरि आया. तिनोंने तिस नगरमें १२५०० सवालाख श्रावक जैनधर्मी करे तब तिनके वंशका नपकेश ऐसा संज्ञा पडी, और नगरका नामनी नपकेश पट्टण प्रसिद हुआ. तिस नगरमें कहा नपकेश वंशीने श्रीमहावीर स्वामीका मंदिर ब. नवाया. तिस मंदिर में श्री रत्नप्रनसूरिने श्रीवीरात् ७० वर्ष पीछे प्रतिष्ठा करी, श्रीमहावीर स्वामिकी मूर्ति स्थापन करी. सो मं. दिर, मूर्ति क्रोमो रुपओकी लागतके योधपुरसे पश्चिम दिशामें आसा नगरी २० कोसके अंतरे में वहां है. नपकेशपट्टन और नपकेश वंशकाही नाम लोकोने ओसा नगरी और ओस वंशी ओसवाले रखा है. भेनें कितनेक पुराने पट्टावलि पुस्तकोमें वराित् ७० वर्षे नपकेशे श्रीवीर प्रतिष्टा श्रीरत्नप्रनसूरिने करी और ओसवाल. नी प्रथम तीस रत्नप्रनसूरिने वीरात् ७० वर्षे स्थापन करे ऐसा देखा है. हम हाय करते है, ओसवाल, श्रीमाल, पोमवाल प्रमुख जैनी बनीयोंकी समजको. क्योंकि जिनके मूल वंशके स्थापन करनेवाले चौदह पूर्वधारी श्रीरत्नप्रनसूरिका प्रतिष्टित जिनमंदिर, जिनप्रतिमा आज प्रत्यक्ष योधपूरसें वीश कोशके अंतरे विद्यमान है. संशय होवे तो आंखोसे जाकर देख लो, तिस रत्नप्रनसूरिके धर्मको गमेके संवत १७०ए में निकलें ढुंढकमति और संवत १७१७ में निकले नीपममति तेरापंथीयोंके कहनेसे नवीन कुपंथ धारा है. जीस पंश्रके चलानेवाले महामूर्ख अणपढ थे. इस वास्ते ओसवाल श्रीमालादि बनियोंने श्रीरत्नप्रनसूरिका नपश्या धर्म ऐसे गम दिया. जैसे कोई नोला जीव चिंतामणिरत्नको किसी महा मूर्ख, गमार, नीच जातिके पुरुषके काच कहनेसें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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