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________________ द्वितीयखम. १७७ " "" ( 0 ) शून्यरूप विश्रामका चिन्ह है तिसके आगे ' ' ऐसा चिम्ह पालि लिपिमें न कारका है. तिस वास्ते " न " कार अ कर करके जगवान् वीर ऐसा जानीये है. इस नपरके लेख में प्रन्य एकनी प्रमाण है. इस चैत्यके एतिह्य रूप खरमेमें तथा कच्छ भूगोल में लिखा है. श्रीवीरात् संवत २३ वर्षे यह जिन चैत्य जिन मंदिर बनाया. इस वास्ते हमने ताम्रपत्र लेखकी कल्पनानी इसके अनुसारही करी है. परंतु किसि गुरु गम्यतासे नहि करी है. इस वास्ते इसकी कल्पना कोई बुद्धिमान् यथार्थ प्रन्यतरेंजी करके मेरेको लिखे तो बमा उपकार है. तथा श्रीपार्श्वनाथ भगवंतसे आज तक अविच्छेदपणे नृपकेश गच्छकी पट्टावली चलती है, तिस पट्टावली पुस्तक में ऐसे लिखा है कि श्री पार्श्वनाथ भगवंत पट्टोपरी वीपार्श्वशिष्य प्रणम्य गणधर श्रीशुन दत्तजी दुवें १ तत्पटे श्री हरिदत्त २ तत्पटे आर्यसमुइ ३ तत्पटे hil Turer प्रदेशी राजाका प्रतिबोध करनेवाला ४ तत्पटे स्वप्रसूरि ५ तत्पटे रत्नप्रन सूरि ६. यह रत्नप्रन सूरि द्वादशांगी चतुर्दश पूर्वधर था, श्री विरात् ५२ वर्षे इनको आचार्य पद मिला, इनके साथ ५०० साधुका परिवार था. सो विहार करते हुवे जिन्नमाल में आये इस निन्नमालका नाम निन्नमालसें पहिलां वीरनगरी था, तिस लाखो वर्ष पहेला श्रीलक्ष्मीमहास्थान था; परंतु श्रीपार्श्वनाथ और महावीर स्वामिके समयमें इस नगरीका नाम जीनमाल था. तिस नगरीका राजा नीमसेन तिसका पुत्र श्रीपुंज तिसका पुत्र नृत्पल कुमार अपर नाम श्री कुमार तिस उत्पलकुमारका बोटा जाइ श्री सुरसुन्दर युवराजा था. उत्पलकुमार राजाके दो मंत्री थे. एकका नाम ऊहरु और दुसराका नाम ऊधरण नहड मंत्रीनें तिस जिन्नमालको किसी निमित्त नज्जड होनेवाली जानके ५५३ घोमे दिल्ली के श्री साधु 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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