SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयखंरु. १७३ मैं दोनदार प्रथम पद्मनाम तीर्थंकर की मूर्ति और मंदिर विद्यमान है, इसवास्ते जनरल कनींगदाम साहेबको जो मूर्ध्नि मिली है सो बहुत पुराणी है. इस्सेंजी जैनमत अपने आपको पुराना और तवारीख लिखनेवालेकी अक्कलका अजीर्ण सिद्ध करता है. जैनमत बौधमतसें नीकला नहि है तथा जो कोइ इसीजी समजता है कि जैनमत बौधमतसें निकला है सोनी जूठ है. क्योंकी इंग्लंमके थोमस साहेबने इक पुस्तक राजा अशोकके प्रथम धर्मके निश्वय करने वास्ते बनाया है तिसमें लिखा है कि राजा अशोकचंड प्रथम जेनी था, और तीसी पुस्तक में लिखा है कि बौद्धमत जैन मतमेसें निकला है, और जैन मत सर्वमतो पहिलां पुराना है. तथा जर्मनिका एक विद्वाननें किताब बनाई है तिसमें अनेक प्रमाणोंसें जैनमत बौद्धमतसें अलग और सनातन लिखा दे. ब्राह्मणोंने शिवपुराण में जो जैन मतकी नृत्पत्ति लिखी है सोनी जुटी है. क्योंकि शिवपुराण धोके कालका बनाया हुआ है इन पुराणों में वैष्णवकी निंदा लिखी है, इस वास्ते नवीन है कित - क कहते है कि हिंदुस्तान में वेद सबसे पुरानें पुस्तक है तिनमें जैनमतका नाम नही इस वास्ते जैनमत नवीन है. यह कहना केवल प्रमाणिक है क्योंकि जिस पुस्तकोमें वेदांका और अन्य मतोंका नाम न होगा वे पुस्तको इस प्रमाणसें वेदोंसे प्रथम बनें ठहरेंगे, जैसे जैनमतका प्रज्ञापना सिद्धांत, जीवानिगम सूत्र तत्वार्थसूत्र, प्रश्नव्याकरण, दशवैकालिक प्रमुख किसिमका और वेदांका नाम नही है. इस्से येनी वेदांके प्रथम बने माननें चाहिये तथा वेदांमें जैनमतका नाम न होनें से जेकर नविन मानिये तब तो जो वस्तु वेदांमें नही कही सो सो सर्व नवीन माननी पफेगी. यह मानना मिथ्या है तथा मुंरुकोपनिषद में मनुस्मृतिका नाम है इस्सें तो मनुस्मृतिनी वेदांके प्रथम बनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy