SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ अज्ञानतिमिरनास्कर. “उत्तिस वास सये विक्कम निवस्त मरण पत्तस्स, सोरठे वल्लहीये सेयवा संघ समुपनो” १ अर्थः विक्रम राजाके मरां पीठे एकसो उत्तीस वर्ष पीठे सोरठ देशकी वजनी नगरी में श्वेतां बर संघ नत्पन्न हुवा. तथा श्वेतांबर मतके शास्त्र विशेषावश्यकमें जीसका कर्ता जिनन्नगणि कमाश्रमण विक्रम संवत् ४०० में दुआ सो लिखता है. “नवाधिकैः शतैः पतिः अब्दानां वीरतो गतैः, महात्सर्वविसंवादात् सोष्टमो बोटिकोनवत् ” १ अर्थः स्थवीरपुर नगरमें श्रीमहावीर पीने ६ए बसों नव वर्ष गये दिगंबर मत हुआ. जब एक जैनमतके दो मत हुये इतने वर्ष हुये तब तवारीख लिखनेवालेका लिखना क्योंकर मिथ्या नहि. तथा जनरल कनींगहाम साहेबनें मथुरामें श्रीमहावीरस्वामोकी मूर्ति पाई है तिसको इति हासतिमिरनाशकके लिखनेवाला 1000 दो हजार वर्षकी पुरानी लिखना है. यह लिखना गलित है. क्योंकि विक्रमसें ए नब्बे वर्ष पहिला वासुदेव नामका कोईनी राजा नहि दुआ. और नस श्रीमहावीरकी प्रतिमा नपर ऐसा लिखा है. " सिः ओं नमो अरहंत महावीरस्त राजा वासुदेवस्य संवत्सरे ए नव्वे" यह लिखते पालि होंमें है, जोके अढाइ हजार वर्ष पहिला जैनमतमें लिखी जातीथी इस वास्ते श्रीमहावीरकी मूर्ति का हजार वर्षकी पुराणी मालुम होती है. जेकर इतिहास लिखनेवालेकी समजमें ऐसा होवे कि श्रीमहावीर अहंतकी मूर्ति श्रीमहावीरसे पाठे बनी होगी इस वास्ते दो हजार वर्षके लगन्नग पुरानी है. यहनी अनुमान गलित है, क्योंकि श्रीऋषन्नेदेवके वखतसेंही होनहार तीर्थंकरोंकी प्रतिमा बनानी शुरु हो गइ श्री-ऐसा जैनशास्त्रमें लिखते है, तो महावीरजीके पीछे होवनीका अनुमान गक नहि. इस कालमेंनी राणीजीके नदयपुरमें आगली नत्सर्पि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy