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________________ द्वितीयखम. १७१ लिख पाये है. इस वास्ते बुझिमानोको अच्छीतरें जैनमतके तत्वको समजना चाहिये, क्योंकि जो लोक वेदांत मानते है सो एकांत माननेसे शु च्यार्थिक नयानास है. यथार्थ नदि है. य थार्थ आत्मस्वरूपका कथन आचारांग, तत्वगीता अध्यात्मसार, अध्यात्मकल्पम प्रमुख जैनमतके शास्त्रोम है. और योगाच्यासका स्वरूप देखना होवे तो योगशास्त्र, योगवीशी, योगदृष्टि, योगबिं, धर्मबिंउ प्रमुख शास्त्रो देख लेना. और पदार्थोका खंमन मंगन देखना होवे तो सम्मतितर्क, अनेकांत जयपताका, धर्मसंग्रहणी रत्नाकरावतारिका, स्याद्वाद रत्नाकर, विशेषावश्यक प्र. मुख ग्रंथो देख लेना, और साधुकी पद विन्नाग समाचारी बेद ग्रंथोमें है, और प्रायश्चित्तकी विधि जितकल्प प्रमुखमें है. और गृहस्थ धर्मकी विधि श्रावक-प्रज्ञप्ति, श्राइदिनकर, आचारदिनकर आचारप्रदीप, विधिकौमुदी, धर्मरत्न प्रमुख ग्रंथोमें है. ऐसा कोई पारलौकिक ज्ञान नहि है जो जैनमतके शास्त्रोमें नहि है; सो जै. नमत और जैनमतके शास्त्र जो इस समयमें है वे सर्व नगवंत श्रीमहावीर स्वामीके नुपदेशसे प्रवर्त्तते है. ___तथा कितनेक बुद्धिमान ऐसेंनी समजते है कि जैनमत जैनमत पुरा- नवीन है: दयानंद सरस्वति कहता है कि साडेतीन ना है. हजार वर्षके जैनमत लगन्नग चीन प्रमुख देशोसें हिंऽस्तानमें आया. यह कथन अप्रमाणिक है. क्योंकि दयानंदजीने इस कथनमें कोईनी प्रमाण नहि दीया. तथा तवारीख लिखनेवा. लोने तथा इतिहासतिमिरनाशकमें लिखा है कि संवत ६००० के लगनगसें जैनमत चला है. यहनी अप्रमाणिक है, क्योंकि श्वेतांबर दिगंबर दो जैनमतकी शाखा फटेको १७७३ अढारसो तीन वर्ष आजतक हुये है. क्योंकि दिगंबर जिनसेनाचार्य अपने बनाये ग्रंथमें लिखता है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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