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________________ १७० अज्ञानतिमिरनास्कर. र्बल हो रहा है सो जैनी राजायोके अन्नावसें; तथा बहुत लोक यहनी समजते है कि जैनमतमें जगतका कर्ता ईश्वर नहि मानते है इस वास्ते जैनमत नास्तिक है; परंतु जगत्कर्ता ईश्वर, निरंजन निर्विकारी, वीतराग किसी प्रमाणसें सिाह नहि होता है, यह कथन जैनतत्वादर्शमें लिख आये है. लोगोकों सूक्ष्मबुझिसे विचारना चाहिये, निम्केवल गमरी प्रवाहकी तरें नहि चलना चाहिये. जगतकर्ताका विचार. प्रश्न-जैनमतमें जेकर पूर्वोक्त ईश्वर जगतका कर्ता नदि मानते तो इस जगतका कर्ता कौन है ? नत्तर-जैनमतमें अनादि जो यशक्ति है, तिसकोंही जड चेतनरूप पर्यायका कर्त्ता मानते है. यह कथन तत्वगीतामें है; तिस अनादि व्यशक्तिके पांच रूप है. काल १ स्वन्नाव कर्म ३ नियति ४ ग्यम ५. जो कुछ जगतमें हो रहा है सो इन पांचोहीके निमित्त, नपादानसें हो रहा है। इन पांचोके विना अन्य को जगतका कर्ता प्रमाण सिह नहि होता है. और इन पांचोहीको जैनमतवाले अनादि व्यकी शक्ति व्यसें कथंचित् नेदान्नेद मानते है. और इस व्यतत्वकोंही इस पर्यायरूप जगतकर्ता मानते है, परंतु सर्वज्ञ, वीतराग, मुक्तरूप परमेश्वर जगतका कर्ता सिइ नदि होता है, लोगोंने इस अनादि व्यत्व शक्तिको प्रज्ञानके प्रन्नावसे समलब्रह्म, सगुणईश्वर, अपरब्रह्म परमेश्वरकी शक्ति, परमेश्वरकी माया, प्रकृति, परमेश्वरकी कुदरत आदि नामोंसे कथन किया है. परंतु वास्तवमें अनादि व्यत्व शक्तिहीको कथन करा है. जैकर सर्वज्ञ, वीतराग ईश्वरकोंही कर्ता मानिये तबतो परमेश्वरमें अनेक दूषण नत्पन्न हो जावेगे, और नास्तिकोका मत सिःह हो जावेगा, यह कथन जैनतत्वादर्शमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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