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________________ हितोयखंम. १६ए महावीरजीके पीछे २५० वर्षके दुये तिनके रचे ५०० ग्रंथ है, और श्री महावीरजीसे पीछे १000 वर्ष गये हरिनइसरि हुये तिनोंके रचे १४४४ चौदसो चमालीस शास्त्र है. तथा हेमचंज्ञचार्यके रचे साडे तीन कोटि श्लोक है. बुल्हर साहेबने बंबई इलाके में १५0000 मेढ लाख जैन मतके ग्रंथोका पता लगाया है. और पांच वर्षके अंदर तिनकी फेरिस्त गपनेका वायदा कीया है. इस नरतखंममें बौधके, शंकरस्वामिके और मुसलमानोंकी जुलमसे बचे हुये अवनी जैनमतके पुस्तकोंके नंडार पाटन, जैसलमेर, और खंबातमें जैसे है तैसे पुस्तक वैदिक मतवालोंको देखनेकानी नसीब नहि है. तथा जैनमतके उ कर्मग्रंथ तथा शतक कर्मग्रंथ पंचसंग्रह तथा कर्मप्रकृति प्रमुख ग्रंथोमें जैसा कौका स्वरूप कथन किया है तैसा बुनियांमें किसी मतके शास्त्रमें नहि है; और कौका स्वरूप देखनेसे यहनी मालुम होजाताहै किये कर्मोकां ऐसा स्वरुप शिवाय सर्वज्ञ, और कोई ऐसा बुद्धिमान् नही जो अपनी बुडिके बलसें ऐसा स्वरूप कथन कर सके अन्यमतोवाले जो जैनमतसें विरोध रखते है सो जैनमतके ग्रंथोके न जाननेस, और जैनमतमें शिवाय अर्हत सिह परमेश्वर अन्य देवोकी नपासना नहि है क्योंकि अन्यमतके देवोमें देवपणा सिद नहि होता है तथा ब्राह्मणोका चलाया पाखंग जैनी मानते नहि है इस वास्ते ब्राह्मण लोक जैनमतकी निंदा करते है तिनकी देखादेखसे अन्यमतवालेंनी जैनसें विरोध रखते है. परंतु बुश्मिानोकुं ऐसा चाहिये कि प्रथम जैनमतके ग्रंथ पढके पीछे गुण दोष कहे, और इस कालमें जैनमतकों थोमा फेलाया देखके अनादरनी न करे. मन जो जैनमतकी बमा लिखी है सो मतानुराग करके नहि लिखि किंतु हकीकतमें जैनमत एसा प्रमाण प्रतिष्ठित है कि जिसमें कोश्नी दूषण नहि है, इस कालमें जो जैनमत नि. 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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