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________________ प्रथमखम. . १५५ मुड होते नही है तो फेर ननके न माननेसे न देखने से कदापि पूर्वोक्त कहना जूठ नही हो सक्ता है; जेसे एक गीदम अर्थात् शियालने जन्म लीना तिस वखत थोडासा मेघ वर्षा तब गीदम कहता है ऐसे नारी मेघके समान कबु जगतमें मेघ नही वर्षा है, क्या तिस गीदडके कहनेसे सर्वत्र महामेघोका अन्नाव हो जावेगा? ऐसही दयानंद और दयानंदीयोंके न देखनेसें पूर्वोक्त वस्तुयोंका अन्नाव नहीं होता है. और जो दयानंद लिखता है कि जैनी बार योजनकी जू मानते है, यह निःकेवल जूठ है ऐसा जूझा कथन जैनमतमें कही नही है. जीव और कर्मकी बाबतमें दयानंदका आक्षेप, इसके आगे पृष्ट पश्श से पृष्ट५२६ तक जीव कर्मकी बाबत लिखी है लिल सर्वका नुत्तर अगले परिच्छेदमें लिखेंगे. और पृष्ट ४२५ लेकर ४० पृष्ठ तक जो षष्टिशतकके श्लोक लिखके अर्थ करा है वे सर्व स्वकपोलकल्पनासें मिथ्या लिखा है.क्यौंकि श्लोकाक्षरोंसे वैसा अर्थ नही निकलता है, जिसने वेदोंका अर्थ फिरा दिया वो जैनमतके श्लोकोंके जूठे अर्थ क्यों न लिखे ! और दयानंदने ४४३ पृष्टसें पृष्ट ४५३ तक जूठी जैनमतकी निंदा लिखी है सो मिथ्यात्व सिद्ध करता है. क्योंकि जैन मतमें ऐसा कहीं नही लिखा है कि वेश्यागमन परस्त्रीगमन करनेसें स्वर्ग मोहमें जाता है. दयानंद लिखता है श्रावक साधु तीर्थकर वेश्यागामी थे यह लेख लिखनेवालेकी अज्ञानता, और मिथ्यात्य प्रसिः करता है, जैनमतमें ऐसा कथन तो नही है परंतु दयानंदने वीतराग निर्विकारीयोंकोनी कलंकित करा इसमें इनकी बुद्धिका मन्नाव कैसा है सो सज्जन लोग जान लेंगे. और जैनमत रागद्वेष रहित सर्वज्ञका कथन करा हुआ है तिससे श्री महावीर नगवंतका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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