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अज्ञानतिमिरनास्कर जीव त्रिपृष्ट वासुदेव हा तिसकोनी नरकमें गया लिखा है और श्रेणिक, सत्यकि, कोणिक ये महावीरके नक्त थे, परंतु जीवहत्या, घोर संग्राम करनेसें और महा विषय नोग करने से जन्मांत तकनी राज्य नही त्यागा इस वास्ते परक गये है ऐसा को सत्यवादी विना कह सक्ता है ? तथा नव बलदेव अचल १ विजय १ नइ ३ सुन्न । सुदर्शन ५ श्रानंद ६ नंदन ७ रामचंद बलन ए इनमेंसें प्रथम आठ मुक्ति गये है और बलनजी पांच में ब्रह्मदेवलोकमें गये है श्नोंने अपने अपने नाई वासुदेवोंके मरणे पीछे सर्व राज्यन्नोग विषय त्यागके संयम महाव्रत अंगीकार करे इस वास्ते मोक्ष और स्वर्गमें गये. इनोनें कुछ जैन तीर्थंकरोकों गूस अर्थात् लांच कोड नही दीनी थी कि तुमने हमको मोह स्वर्गमें गये कहना. और वासुदेव ए, प्रतिवासुदेव ए, इनोनें राज्य लोग विषय नही त्यागा, महाघोर संग्रामोमें लाखो जीवोंका वध करा इस वास्ते नरक गये है. हां यह सत्य है. और हमनी कहते है कि जो राज्य नोग विषयरक्त, घोर संग्राम करेगा, मरणांत तकन्नी पूर्वोक्त पाप न गेडेगा तो नरकमें जायगा. और जो कृष्ण महाराजकी बाबत लिखा है कि जैनीयोने कृष्णको नरक गया लिखा है सो सत्य है क्योंकि जैन मतमें कृष्ण वासुदेव दु
आ है तिलको हुए ६४१२ वर्ष आज तक ढूए है वो कृष्ण अरिष्टनेमि २२ में अहतका नक्त श्रा, उसने नविष्य कालमें बारवा अमम नामा अहंत होनेका पुण्य नपार्जन करा परंतु राज्य नोग संग्राम विषयासक्त होनेसें मरके नरकमें गया. तहांसें निकलके वारवा अवतार अमम नामा अरिहंत होगा. ऐसा लेख जैन मतके शास्त्रमें है. परंतु जिस कृष्ण वासुदेवकों दूए है गौर कृष्णकों लोक ईश्वरावतार मानते है इस कृष्ण वासुदेवका कथन जैनमतमें किचिन्मात्रही नही है. और न इस कृष्णको जैनमतमें नरक
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