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________________ प्रथमखंम. १५३ केवल जूठ है बौद्ध लोगतो सप्तरंगी स्याद्वाद के शत्रु है. वांचक वृंद ! तुमने कजी जैन मतके सिवाय अन्य मतमें स्याद्वाद सप्त जंगी सुनी है ? तत्वलोकालंकार, स्याद्वादरत्नाकर, अनेकांतजयपताका आदि जैन मतके शास्त्रों में पूर्वपदमें बौद्ध लोकोंनें जैनके शत्रु दोके बहुत जैनमय स्याद्वाद सप्तरंगीका खंमन लिखा है. ra artis लिखता है बौद्ध लोग स्याद्वाद सप्तनंगी मानता है यह केवल दयानंदका जैनमतानभिज्ञता और विवेकविकलता सिद्ध करता है. स्वाद्वाद इस पदका यथार्थ अर्थ जैनीयोंके शिष्य बने विना अन्य प्रकारसे नहीं आवेगा. गोविंद, कुमारीलजह नयनकी तेरे जैनीयोंके शिष्य बनके शिखे तो कदाचित् श्रा वी जावे. आगे जी व्यासजीनें ब्रह्मसूत्रमें "नैकस्मिन्त्रसंजवात् " इस सूत्रमें सतजंगीका खंडन करा है. इस सूत्रकी शारीरिक जाष्यमें शंकराचार्यने सप्तनंगीका खंगन लिखा है. पीछे सायन, माधव, विद्यारण्यनेंजी सप्तनंगीका खंमन लिखा है: सप्तरंगी जिसतरें जैन मानते है और जैसा खंमन व्यास शंकरने करा है और व्यास शंकरके खंगनका खंडन द्वितीय खंड में लिखेंगे तहासें जान लेना. जब व्यास ओर शंकर, सायन. माधव जैसैकोजी सप्तभंगीकी समज यथार्थ नही पक्षी तो दयानंदको क्या खबप. पृष्ट ४११ में लिखता है, सप्तजंगी अन्योन्य प्रभाव समासकती है, यह लेखनी अज्ञानताका है क्योंकि जब सप्तजंगीका स्वरूपी दयानंदकी समऊमें नही ग्राया तो आगे लिखना सब मिथ्या है. काल संख्या मानने में दयानंदजीका कुतर्क, 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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