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अज्ञानतिमिरनास्कर. नही आया. उसकी नूमिकाकी (१) नकल इसके साथ जाती है. उससे विदित होगा कि, संग्रह है, बहुत वात खंमनके लिये लिखी गई, मेरे निश्चयके अनुसार नसमें कुबनी नही है. - ४ जो स्वामीजी जैनको इतिहासतिमिरनाशकके अनुसार मानते है तो वेदोंकोंन्नी नुसके अनुसार क्यों नही मानते. बनारस १ जान्युआरी
आपका दास सन १७७३ ३०
शिवप्रसाद, इस राजा शिवप्रसाददके लेखसे जो दयानंदजी जैन बौद्ध चार्वाक मतको एक कहता है सौ महामिथ्या है. दयानंद सरस्वतीजीकी डंडी कहींनी नहीं सिकरती है.
तथा दयानंदजी जगे जगे ऐसें लिखता है जैनीयोमें विद्या नही थी. तथा अन्यमतवालोंकोजी ऐसेही लिखता है. यह लिख ना ऐसा है जैसा मारवाममें पश्मिनी स्त्रीका होना. जैसे मारवाम में एक काली, कुदर्शनी, दंतुरा, चिपटी नासिका, विनत्स्य रूप वाली, एक स्त्रीको किसीने पुग कि तुमारे गाममें पद्मिनी स्त्री सुनते है तिसको तुं जानती है ? तब वो दीर्घ नच्छवास लेके कहती है कि मेरे सिवाय अन्य पश्मिनी स्त्री कोई नही, मुजको बहु त शोक है कि मेरे समान कोई पद्मिनी न हुई न होगी. मेरे मरण पी जगतमें पद्मिनी स्त्री व्यवच्छेद हो जावेगी. नला, यह वात कोई सुझ जन मान लेवेगा कि जैनमतमें वा अन्य मतमें कोईनी विज्ञान नही हुआ है ? ।
सप्तभंगीमें दयानंदका कुर्तक. दयानंदजी सत्यार्थप्रकाश पृष्ट १० में लिखता है, बौह और जैनी लोग सप्तनंगी और स्याहाद मानते है. यह लेख निः
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