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प्रश्रमखंरु.
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बृहस्पति मतका प्रार्यसमाजका मतकी साथ कुछ साधर्म्य - जी मालुम होता है. बृहस्पति पांच जूत मानता है, और दयानंदजी पांच जूत मानता है; बृहस्पति मनुष्य तिर्यंच पशुकी गति शिवाय नरक और स्वर्गगति अर्थात् नारकी देवतायोंके रहनेका नरक स्वर्ग इस जगतके शिवाय कहीं नहीं लिखता है, ऐसेही दयानंदजी मानता है; जैसे बृहस्पति सदामुक्त नदी मानता है, तैसें दयानंदजी सदासुक्त रहता नही मानता है; इत्यादिक कितनी वस्तुयोंके माननेसें चार्वाकका मत दयानंदका सधर्मी मालुम पकता है.
और जो दयानंदजी चार्वाकमतकों जैनमतका संबंधी लिखता है तथा जैन बौमतको एक लिखता है तिसमें राजा शिवप्रसाद के इतिहास तिमिरनाशककी गवाही लिखता तिस वास्ते दमने बाबु शिवप्रसादकी दस्ताक्षरकी पत्रिका मंगवाई सो यहां दर्ज करते है.
बाबु शिवप्रसादकी हस्ताक्षर पत्रिका.
श्री ए सफल जैन पंचायत गुजरावालोंको शिवप्रसादका प्रणाम पहुंचे. कृपापत्र पत्रों सहित पहुंचा.
१ जैन और बौड़मत एक नहीं है. सनातन से मित्र निन्न चले प्राये है. जर्मन देशके एक बजे विद्वाननें इसके प्रमाण में एक ग्रंथ बापा है.
२ चार्वाक और जैनसे कुछ संबंध नही. जैनको चार्वाक कहना ऐसा है जैसा स्वामी दयानंदजी महाराजको मुसलमान कहना.
३ इतिहास तिमिरनाशकका आशय स्वामीजीकी समजमें
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