SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्रमखम. ११ “ जगत्प्रन्नुः. पु. जगतां प्रनुः जगत्प्रनुः.” अर्थइस जगतका स्वामी होनेसे ईश्वरका नाम जगत्प्रन्नु है. १२" तीर्थकर.: पु. तीर्यते संसारसमुशेऽनेन इति तीर्थ प्रवचनाधारञ्चतुर्विधः संघः तत् करोति इति तीर्थकरः" अर्थ-जिस करके संसार समुइ तरीए सो तीर्थ; तिसकुं करनेवाला होनेसें ईश्वर परमात्माका नाम तीर्थंकर है. १३ “ तीर्थकरः. पु. तीर्थ करोतीति तीर्थकरः.” अर्थ--पूर्वोक्त संसारसमुसें तारनेवाला तीर्थका प्रवर्तक होनेसें ईश्वर परमात्माका नाम तीर्थकर है. १५ “जिनेश्वरः पु. रागादिजेतारो जिनाः केवलिनस्तेषामीश्वरः जिनेश्वरः.” अर्थ-रागद्वेषादि महा कर्मशत्रुवोके जितनेवाले सामान्यकेवली तीनोंकानी ईश्वर होनेसें परमात्माका नाम जिनेश्वर है. १५ " स्याछादी. पु.स्यादिति अव्ययमनेकांतवाचकं “ततः स्यादिति अनेकांतं वदतीत्येवंशीलः स्याहादी” स्याहादोऽस्यास्तीति वा स्याहादी यौगिकत्वादनेकांतवादी इत्यपि पाठः.” अर्थ-सकल वस्तुस्तोम अपने स्वरूप करके कथंचित् अस्ति है और परवस्तुके स्वरूप करके कथंचित् नास्तिरूप है ऐसा तत्व प्रतिपादन करनेवाला होनेसे ईश्वरका नाम स्याहादी है. १६ “अन्नयदः. पु. नयमिहपरलोकादानाकस्मादाजीवमरणाश्लाघानेदेन सप्तधा एतत्प्रतिपकतोऽनयं विशिष्टमात्मनः स्वास्थ्य निःश्रेयसधर्मनिबंधनन्नूभिकानूतं तत् गुणप्रकर्षादचिंत्यशक्तियुक्तत्वात् सर्वश्रा परार्थकारित्वाददाति इति अजयदः.” अर्थ-सर्वथा अन्नयका देनेवाला होनेसे ईश्वरका नाम अन्नयद है. १७ “ सार्वः. पु. सर्वेन्यः प्राणिन्यो हितः सार्वः.” अर्थ-सर्व प्राणीके पर हितकारी होनेसे ईश्वरका नाम सार्व है. 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy