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________________ १३८ अज्ञान तिमिरज्ञास्कर. १० " सर्वज्ञः प्र. सर्व जानातीति सर्वज्ञः " अर्थ — सर्व पदाकुं अपने ज्ञानद्वारा जाननेवाला दोनेसें ईश्वरका नाम सर्वज्ञ है. १७" सर्वदर्शी. पु. सर्व पश्यतीत्येवंशीलः सर्वदर्शी " अर्थअपने अखं ज्ञानद्वारा सर्व वस्तुको देखनेका स्वभाव है जिसका इस लीये ईश्वरका नाम सर्वदर्शी है. २० " केवली. पु. सर्वथाssवरणविलये चेतनस्वन्नावाविनवः केवलं तदस्यास्तीति केवली. " अर्थ - सर्व कर्म आवरणके दूर होनेसें चेतनस्वभावका प्रकट होना सो केवल ऐसा केवलका धारक होनेसें ईश्वर परमात्माका नाम केवली है. २१ " देवाधिदेवः. पु. देवानामप्यधिदेवो देवाधिदेवः. " अर्थ-देवताकाजी देव होनेसें ईश्वरका नाम देवाधिदेव है. २२ " बोधिदः. पु. बोधिः जिनप्रणीतधर्मप्राप्तिस्तददाति इति वोधिदः. ” अर्थ — जिनप्रणीत शुद्ध धर्मरूप बोधिवीजका देनेवाला होनेसें ईश्वरका नाम बोधिद है. २३ " पुरुषोत्तमः. पु. पुरुषाणां उत्तमः पुरुषोत्तमः. " अर्थपुरुषों के बिच सर्वोत्तम श्रेष्ठता धारण करनेवाला होनेसें ईश्वरका नाम पुरुषोत्तम है. २४ " वीतरागः. पु. वीतो गतो रागोऽस्मात् इति वीतरागः. " अर्थ- दूर हो गया है अंगनादिकोंसें राग जिसका इस लिये ईश्वर परमात्माका नाम वीतराग है. २५ प्राप्तः पु. जीवानां हितोपदेशदातृत्वात् प्राप्त इव अर्थ — जीवोके तां हितोपदेश करनेवाला होनेसें ईश्व - " प्राप्तः. का नाम प्राप्त है. यह नामो सत्य परमेश्वरके है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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